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गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ
[१८३
पूज्य ज्ञानमती-आर्यिका-स्तुतिः
- डॉ० दामोदर शास्त्री-दिल्ली
(१)
छन्दः उपजाति ज्ञानेन शीलेन च संयमेन,
जिनोक्त - रत्नत्रयमाश्रयन्तीम् । अध्यात्ममार्गाश्रित - शुद्धचित्ताम् ,
भक्त्याऽऽर्यिकां ज्ञानमतीं नमामः ॥ अर्थ :- ज्ञान, शील व संयम के माध्यम से जिनेन्द्र-निर्दिष्ट रत्नत्रय (मोक्षमार्ग) का आश्रयण करती हुई तथा अध्यात्म-मार्ग का आश्रयण कर शुद्ध चित्त वाली पूज्य आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी को भक्तिपूर्वक हम प्रणाम (नमोऽस्तु) निवेदन करते हैं।
(२)
छन्दः इन्द्रवज्रा सर्वानुयोगाध्ययनानुशीलाम,
लब्धप्रतिष्ठां करणानुयोगे । धर्मोपदेशे सततं प्रवृत्ताम्,
भक्त्याऽऽर्यिकां ज्ञानमतीं नमामः ॥ अर्थ :- पूज्य आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी जैनागमों के सभी अनुयोगों के अध्ययन का अनुशीलन करती रहती हैं, तथापि वे 'करणानुयोग'
में विशेषज्ञ होने की प्रतिष्ठा प्राप्त है, वे धर्मोपदेश-कार्य में निरन्तर प्रवृत्त रहती हैं, हम उन्हें भक्तिपूर्वक वन्दना (नमोऽस्तु) करते हैं।
(३)
छन्दः इन्द्रवज्रा आचार्यवर्यैरकलंकविद्या
नन्द्यादिभिर्या सरणिर्गृहीता । व्याख्यातुकामाऽऽर्षपथं तयैव,
भक्त्याऽऽर्यिकां ज्ञानमतीं नमामः ॥ अर्थ :- अकलंक, विद्यानन्दि आदि आचार्यवरों ने जो मार्ग अपनाया, उसी मार्ग का आश्रयण कर प्राचीन आर्ष-परम्परा की व्याख्या करने वाली पूज्य आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी को हम भक्तिपूर्वक वन्दना (नमोऽस्तु) करते हैं।
(४) छन्दः उपजाति
ब्राम्यादिकाः संयतिकाप्रधानाः,
नारीषु रत्नानि पुरा बभूवुः । प्रवर्तयित्री सुपरम्परां ताम्,
भक्त्याऽऽर्यिकां ज्ञानमतीं नमामः ॥ अर्थ :- ब्राह्मी, सुन्दरी आदि पूज्य आर्यिकाएँ प्राचीन काल में श्रेष्ठ नारी-रत्न के रूप में प्रसिद्ध हो चुकी हैं, उसी श्रेष्ठ परम्परा को आगे बढ़ाने
वाली पूज्य आर्यिका श्री ज्ञानमतीजी को हम भक्तिपूर्वक वन्दना (नमोऽस्तु) करते हैं।
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