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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
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हो चुका था, लेकिन गाड़ी के लेट होने की वजह से मैं समय से पूर्व नहीं पहुँच सका। उधर माताजी चिंतित थीं, किन्तु उन्हें यह विश्वास था कि फागुल्ल जी समय पर जरूर पहुँच जाएंगे और हुआ भी यही मैं बिल्कुल समय पर हस्तिनापुर पहुंचा तब माताजी बहुत प्रसन्न हुई और मुझे उनका भरपूर आशीर्वाद प्राप्त हुआ ।
मुझे पूज्य माताजी के ग्रन्थों के मुद्रण करने का कई वर्षों तक सौभाग्य मिला, जिसके कारण हस्तिनापुर भी मेरा जाना होता रहा और उनका मंगल आशीर्वाद भी मिलता रहा। ऐसी महान् विदुषी पूज्य माताजी के श्रीचरणों में मैं अपनी विनयाञ्जलि समर्पित करते हुए यह भावना भाता हूँ कि वे चिरकाल तक हम लोगों का मार्गदर्शन करती रहें।
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"साक्षात् कल्पवृक्ष हैं माताजी "
- अनिल कुमार जैन, देहली
पू० गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी सचमुच अपने नाम के अनुरूप ज्ञान स्वरूपिणी, महाशक्ति स्वरूपा, सरस्वती देवी का साकार रूप हैं। दया की महासागर हैं। जो भी माताजी की शरण में आया, उसको माताजी ने अपने स्नेह की शीतल छाया में ज्ञान रूपी कवच पहनाया । क्योंकि ज्ञान के बिना मनुष्य में कोई गुण टिक ही नहीं सकता।
इस पंचम काल में जो गति अति दुर्लभ है, सो पू० माताजी की अनुकम्पा से, उनकी छत्रछाया में सहज ही भक्तों ने प्राप्त की । माताजी के चरणों में ज्ञान गंगा की धारा सतत प्रवाहित होती रहती है। जिसको भी उनका सानिध्य मिला, निहाल हो गया। "साक्षात् कल्पवृक्ष हैं माताजी !” माताजी ! आप सचमुच में "विद्या माता है" । विद्या वह गुण है जिसे न तो चोर चुरा सकता है, न राजा ही छीन सकता है सदा साथ रहती है। विद्या से नम्रता आती है, जहां नम्रता रूपी गड्ढा होता है वहाँ सभी प्रकार के गुण वास करते हैं।
आज समाज को माताजी की आवश्यकता है। क्योंकि आप ही आज के नर तथा नारी को सही दिशा दे सकती हैं।
आज जब हम कहते हैं कि हमारा देश राम राज्य जैसा हो, तो वह केवल कहने से राम राज्य जैसा नहीं हो जायेगा। हमें अपने विचारों को बदलना होगा। इसका माध्यम है सत्संग और सद्विचारों का प्रचार और इसी कार्य को पूज्य गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमतीजी द्वारा किया जा रहा है।
हम भी ऐसे बन पायें इस आशीर्वाद की इच्छा सहित।
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