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________________ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ परहित में संलग्न - Jain Educationa International मुझे पू० माताजी के दर्शनों का सौभाग्य दो बार प्राप्त हुआ है व दर्शन की पुनः अभिलाषा बनी रहती है। पू० माताजी सम्यक्दर्शन, ज्ञान, चारित्र तप से सुशोभित हैं, स्व-पर के हित में संलग्न हैं व हस्तिनापुर में पू० माताजी की प्रेरणा से जो स्थाई कार्य सम्पन्न हुए हैं, वे सबको विदित है। आपके द्वारा रचित ग्रन्थों की संख्या डेढ़ सौ से भी ज्यादा है, जिसमें महान् ग्रन्थराज "अष्टसहस्री" जैसी की हिन्दी टीका करके स्व-पर का महान् हित किया है। ये सब कोई छोटी-मोटी बात नहीं है; ये पू० माताजी के तप का अतिशय प्रभाव है पू० माताजी के द्वारा आज लाखों जीवों का हित हो रहा है, अनेक ने शिक्षा-दीक्षा ली है। यथा नाम तथा गुण के अनुसार माताजी ने गुण संग्रह किये है। ऐसी प्रकाण्ड विदुषी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी के चरणों में अपनी ओर से विनयांजलि अर्पण करती हूँ। पू० माताजी दीर्घायु हो, यही वीर प्रभु से प्रार्थना है, ताकि संसार में सभी भव्य जीवों को मार्गदर्शन मिलता रहे। श्रीमती सन्तोष कुमारी जैन, बड़जात्या, नागौर ज्ञानमती माताजी मेरी इष्ट देवी हैं। [१७९ - वासुदेवपाल, गोहाटी वासुदेव पाल आसाम के निवासी वैष्णव मूर्ति बनाकर बेचना मेरा पेशा था, लेकिन मैं जैन धर्म से सम्बन्धित कुछ झाँकियाँ बनाने के लिए "जम्बूद्वीप" हस्तिनापुर में सन् १९७९ ई० में आया था। उसी समय मुझे "ज्ञानमती माताजी का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। माताजी ने आशीर्वाद देते हुए कहा था, धर्म पर श्रद्धा रखकर काम करने से तुम्हारे जीवन में इतनी प्रगति होगी जो तुम कल्पना भी नहीं कर सकते। मैंने भी उसी समय अपने मन के भीतर ज्ञानमती माताजी के चरण पर अपने हृदय से पुष्पांजलि अर्पण किया और जब भी मेरे को किसी काम के लिए बुलाते हैं तो माताजी के आशीर्वाद से उनकी कल्पना को साकार रूप तैयार करने का प्रयत्न करता हूँ । माताजी को इतना ज्ञान है जिसका कि मैं वर्णन नहीं कर सकता । मैं इतना कह सकता हूँ कि पूर्व जन्म के संस्कार से हमें दुर्लभ ज्ञानमती माताजी का दर्शन हुआ, मैं कभी सोचकर हैरान हो जाता हूँ कि ज्ञानमती माताजी ही मेरी इष्ट देवी हैं। माताजी के साथ बातें करते हुए हमें कुछ झलक आध्यात्मिक दर्शन हुए जो अलौकिक है। माताजी की मैं सागर से तुलना करता हूँ क्योंकि मैं इस संसार का एक बिन्दु हूँ। मेरी प्रार्थना यही है कि मैं जब भी इस धरती पर आऊँ मुझे ऐसा ही दुर्लभ चरण स्पर्श मिले। यह मेरा माताजी से निवेदन है। " वात्सल्य की जीवन्त प्रतिमा" For Personal and Private Use Only 1 पूज्य श्री ज्ञानमती माताजी वर्तमान युग की एक आर्दश साध्वी है जिन्होंने अपनी कठिन तपस्या, दूरदर्शिता, अगाध ज्ञान एवं कठोर संयमसाधना से जगत् का महान् उपकार किया है। उनकी शास्त्रीय विषयों की पकड़ असाधारण है। किसी भी विषय को वे सरलता से आत्मसात् कर लेती हैं, यही कारण है कि उन्होंने बड़े-बड़े ग्रन्थों का अनुवाद भी सहज ही करके दिखा दिया है जो कि विद्वानों के लिए अनुकरणीय है । उनकी प्रवचन शैली ओजपूर्ण और विद्वत्तापरक है। ईसवी १९८३ की एक घटना ने तो मेरे मन में अमिट छाप छोड़ दी और उस समय मैंने पहचाना कि पूज्य माताजी का आत्म-विश्वास कितना महान् है। पूज्य आर्यिका श्री रत्नमती अभिनन्दन ग्रन्थ मेरी प्रेस में छप रहा था और चित्रों के छपने की व्यवस्था दिल्ली में थी लेकिन ग्रन्थ की बाइडिंग करने के लिए केवल ५ दिन का समय शेष रह गया था और दिल्ली से चित्र नहीं आये। हस्तिनापुर से एक सज्जन बिल्टी लेकर तो आ गए लेकिन पार्सल बनारस में लाकर भी बिना बण्डल खोले ही पुनः दिल्ली वापिस चले गए। मैं उसी गाड़ी से दिल्ली गया और चित्रों की पार्सल बनारस लाकर रात दिन लगाकर ग्रन्थ की बाइण्डिंग कराई। विमोचन का समय निश्चित 1 - पं० बाबूलाल फागुल्ल, वाराणसी www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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