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________________ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ कलिकाल की शारदा -श्रीमती कमलेश जैन ध०प० अमरचन्द जैन होमब्रेड, मेरठ असित गिरिसमं कज्जलं सिन्धुपात्रे, सुरतरुवर शाखा लेखनी पत्रमुर्वी । लिखति यदि गृहीत्वा शारदा सर्वकालं, तदपि तव गुणानामीश पारं नयाति ॥ पूज्य गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी के गुणों का वर्णन हम जैसे अज्ञानी प्राणी कैसे कर सकते हैं ? उनकी जिह्वा पर तो मानो सरस्वती ही विराजमान हैं, इसीलिए उनके मुख से निकले हुए प्रत्येक शब्द सत्य होते हैं। उनके द्वारा रचित इन्द्रध्वज विधान मुझे चार बार करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। विधान में इतना अतिशय नजर आता है, जिसका अनुमान बिना विधान किये अनुभव नहीं किया जा सकता। भूख-प्यास की बाधा तो जैसे समाप्त ही हो जाती है। भले ही ५ बजे सुबह से शाम ३ बजे तक पाठ की पूजन चलती रहे, किन्तु कभी कोई आकुलता महसूस नहीं हुई। मैं समझती हैं कि यह सब पूज्य माताजी के शब्दों की ही शक्ति है। ऐसी शारदा माता ज्ञानमतीजी के चरणों की आराधना का मुझे सदैव सुअवसर प्राप्त होता रहे, यही मेरी जिनेन्द्र भगवान से प्रार्थना है। एक अनुभव - एक प्रश्न - कैलाशचंद जैन, मुजफ्फरनगर सभी जग प्रख्यात व्यक्तित्व चाहे सामाजिक, राजनैतिक रहे हों, चर्चा के पात्र रहे हैं। माताजी भी इसका अपवाद नहीं हैं, मगर प्रत्येक व्यक्ति को माताजी के सम्मुख आकर नतमस्तक होते ही देखा है। यहाँ एक समय का अनुभव लिखना चाहूँगा। हस्तिनापुर जम्बूद्वीप कार्यकारिणी की सभा में मैं सम्मिलित होने गया हुआ था, सभा समय पर प्रारम्भ हो गयी, एक सज्जन की प्रतीक्षा हो रही थी। मोदीनगर के सुशील कुमार जैन कई सदस्यों सहित आधा घण्टा विलम्ब से आये, आकर चुपके से सभा में सम्मिलित हो गये। कुछ समय पश्चात् उनसे बात करने पर ज्ञात हुआ कि वे सभी के साथ कार में आ रहे थे कि रास्ते में कार पलट गयी। कार पूरे सदस्यों से भरी हुई थी, मगर सभी सदस्य स्वस्थ थे, कार सीधी कर, फिर सभी लोग बैठे, हस्तिनापुर पहुंचे। यह चमत्कार सभा में आने और माताजी के दर्शन करने की भावना सभी सदस्यों में थी, इसलिए था अथवा, क्या संयोग था। यह बताना किसी मानव का कार्य नहीं है, केवल ज्ञानी ही बता सकते हैं। हस्तिनापुर-जम्बूद्वीप, त्रिलोक शोध संस्थान पर आकर क्या कुछ अजूबा अनुभव नहीं है ? मैना से ज्ञानमती तक की संक्षिप्त यात्रा - आनन्द प्रकाश जैन [सोरमवाले], दिल्ली परम पूजनीया श्री १०५ आर्यिका रत्न ज्ञानमती माताजी के चरणों में शत-शत वन्दन। १. अभिवन्दन ग्रन्थ उन्हीं महापुरुषों के लिखे जाते हैं, जिनके जीवन में विशेषता हो, वह विशेषताएँ माताजी के अंदर विद्यमान हैं। २. श्री ज्ञानमती माताजी का जन्म अग्रवाल जैन समाज के श्रेष्ठि श्री छोटेलालजी के घर आश् ि । सुदी १५ सन् १९३४ में टिकैतनगर (जि०) बाराबंकी, उत्तर-प्रदेश में हुआ था। जो बाद में दीक्षा लेकर १०५ आर्यिका रत्नमतीजी के नाम से विख्यात हुईं। उनकी समाधि हस्तिनापुर जम्बूद्वीप में ही हुई थी। ३. माताजी का परिवार धार्मिकता की ओर अग्रसर है। परिवार के समस्त सदस्य भक्त हैं। माताजी के चार भाई तथा नव बहिनें हैं। Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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