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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
को कहा था। आपके निर्देशानुसार मैं एवं मेरे परिवार वाले णमोकार मंत्र की जाप कर रहे हैं एवं मैं यंत्र का अभिषेक भी कर रहा हूँ। आज भी महसूस होता है कि मुझे बहुत ही शान्ति मिल रही है, पर अभी भी कई बार मैं उत्तेजित हो जाता हूँ।
___ मैं आपके निर्देशानुसार ही धर्म में लगा हुआ हूँ एवं उम्मीद करता हूँ कि आपका स्नेह तथा आशीर्वाद मुझे सदा ही मिलता रहेगा, जिससे मैं अपनी जिंदगी में सफलता की ओर अग्रसर होता रहूँगा।
मेरे परिवार की तरफ से आपका सादर वन्दन ।
कुशल आचीटेक्ट
- कैलाशचन्द्र जैन, [इंजी० रिटा०]
तोपखाना बाजार, मेरठ
वैराग्य की मूर्ति, शांति की प्रतिमा पूज्य ज्ञानमती माताजी को मैं विनयांजलि अर्पित करता हूँ तथा भगवान् महावीर स्वामी से प्रार्थना करता हूँ कि माताजी १०० वर्ष की आयु को प्राप्त करें।
मैं पिछले आठ वर्षों से माताजी के सानिध्य में जम्बूद्वीप स्थल पर रहकर निर्माण कार्य करा रहा हूँ। पूज्या ज्ञानमती माताजी के विषय में, मैं जो रहस्य उद्घाटन करने जा रहा हूँ, शायद ही अन्य कोई जानता हो। यह रहस्य जम्बूद्वीप की रचना के सम्बन्ध में है।
प्रत्येक निर्माण कार्य सदैव एक पैमाना मानकर कराया जाता है। अब यदि सुमेरु पर्वत की मौके पर निर्मित ऊँचाई १०० फुट मानी जाए तो पैमाने के अनुसार १ फुट = १०० योजन (१ योजन = ४००० मील) अर्थात् १ फुट = ४०,००,००० मील हुई। इसी पैमाने पर यदि सुमेरु के आधार की चौड़ाई भी रखी जाती तो चौड़ाई मात्र एक सींक के बराबर भी न आती। इसी प्रकार समस्त पर्वतों की लम्बाई, चौड़ाई व ऊँचाई मात्र कुछ इंचों में ही आती। अर्थात् यदि पैमाने के अनुसार रचना होती तो रचना बहुत बेतुकी लगती। और बन भी नहीं सकती थी।
अतः मुझे आश्चर्य इस बात से हुआ कि माताजी ने अपने रजिस्टर में पूर्व से लिखे हुए नापमान के अनुसार जब मुझको निर्माण करवाने के लिए लिखवाया, यानि प्रत्येक पर्वत व नदी की लम्बाई, चौड़ाई व ऊँचाई आदि फुट व इंचों में लिखाई तथा उनके अनुसार मौकेपर निर्माण कराने पर पूरा का पूरा जम्बूद्वीप जैसा कि मौके पर निर्मित है, का निर्माण आसानी से पूरा हो गया।
कहने का तात्पर्य यह है कि कोई भी निर्माण पूर्ण पैमाना मानकर कराना आसान है, परन्तु मात्र अपने विस्तृत शास्त्र ज्ञान के आधार पर ऐसा अभूतपूर्व निर्माण कराना माताजी का एक कुशल से कुशल आचटिक्ट होने को प्रमाणित करता है। मेरी तो यही शुभकामना है कि माताजी लम्बी आयु को प्राप्त कर इसी प्रकार जैन समाज की अपने अद्भुत ज्ञान के द्वारा सेवा करती रहें व अपने भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करती रहें।
जैन समाज की चेतना
- चमनलाल जैन, खतौली
पूज्या माताजी ने शताधिक ग्रन्थों का निर्माण किया है, अष्टसहस्री जैसी क्लिष्ट कृति का अनुवाद आपने किया है, समाज में एक नयी चेतना का मन्त्र आपने फूंका है। मैं जब भी माताजी के दर्शनार्थ हस्तिनापुर गया, हृदय श्रद्धा से भर गया। जैन समाज को अभी माताजी से बहुत आशाएँ हैं। वीर प्रभु से प्रार्थना है कि माताजी इसी प्रकार स्वस्थ रहकर जैन समाज में जैन धर्म और संस्कृति का प्रचार-प्रसार करती रहें। अभिवन्दन ग्रन्थ प्रकाश के अवसर पर मैं पूज्या माताजी के चरणों में अपनी विनयाञ्जलि अर्पित करता हूँ और अभिवन्दन ग्रन्थ के प्रकाशन हेतु अपनी शुभकामनाएँ व्यक्त करता हूँ।
पूज्या माताजी ने प्रथम बार खतौली में पदार्पण करते ही जैननगर कालौनी का उद्घाटन अपने कर-कमलों द्वारा किया। माताजी का ही यह आशीर्वाद है कि यह कालौनी दिन-प्रतिदिन प्रगति पर है, तभी माताजी का ससंघ खतौली में चातुर्मास हुआ और चातुर्मास में ही खतौली में माताजी ने शिक्षण शिविर लगाया, जिसमें देश के बड़े-बड़े विद्वान् सम्मानित किये गये तथा समाज के विद्यार्थियों ने धर्मलाभ लिया। इस खतौली चातुर्मास में ही माताजी की लेखनी से इन्द्रध्वज विधान का निर्माण हुआ। जो भारतवर्ष में स्थान-स्थान पर किया जा रहा है और धर्म-प्रभावना हो रही है। माताजी अस्वस्थ रहते हुए भी जैनधर्म की जागृति के प्रति अग्रसर हैं। जम्बूद्वीप पर सुमेरु पर्वत के अतिरिक्त बने ज्ञानज्योति, त्रिमूर्ति मती कला मन्दिर, कमल मन्दिर आदि स्मरणीय रहेंगे। अंत में पूज्या माताजी के चरणों में बारम्बार वंदामि।
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