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________________ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ [१५१ '" पूज्या माताजी के शास्त्रा म जाविधानों की श्रृंखला है, उनमें इन्द्रध्वज विधान, कल्पद्रुम विधान, सर्वतोभद्र विधान आदि कई विधान प्रमुख हैं। उन्होंने ऐसी रचना की, ऐसी रचना जो कि विधान में संगीत के साथ विधान की लय चलती है और विधान में लगे सभी धर्मप्रेमी बन्धु को विधान में अपूर्व धर्म लाभ होता है। पूज्या माताजी आगे भी अपनी इस लेखनी से ज्ञान की गंगा बहाती रहें, ऐसी मंगलकामना करता हूँ। अन्त में पूज्या माताजी के चरणों में शत शत नमन। आर्ष परम्परा की प्रचारिका - नन्दलाल टोंग्या, इन्दौर [म०प्र०] परमपूज्या माताजी का सुयोग एवं सानिध्य मुझे सनावद चातुर्मास के शुभावसर पर सर्वप्रथम प्राप्त हुआ था एवं वहाँ पर उनकी प्रवचन शैली, व्यवहार, चातुर्य आदि कौशल देखने व श्रवण करने को मिला। विहार के दौरान इन्दौर व इन्दौर से अतिशय क्षेत्र बनेडिया तक भी साथ रहने का सुयोग प्राप्त हुआ था। परमपूज्या माताजी की सद्प्रेरणा से शास्त्रोक्त आर्षमार्गानुसार जम्बूद्वीप रचना का भव्य विशाल निर्माण, विश्व में एक अद्भुत कार्य हुआ है, जो कि सदैव चिरस्मरणीय एवं इतिहास पन्नों में स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगा। परमपूज्या माताजी के चरणों में सादर वंदन करता हुआ अपनी ओर से विनयांजलि प्रेषित करता हूँ कि परम पूज्या माताजी दीर्घायु होकर अपना रत्नत्रय पालन करते हुए देश, समाज की सेवा करती रहें। जैन धर्म की प्रभावना पूर्वाचार्यों की आर्ष परम्परानुसार निरंतर करती रहें यही भगवान् जिनेन्द्रदेव से प्रार्थना करता हूँ। माताजी की ज्ञानज्योति सदैव प्रज्वलित रहे -विनोद हर्ष, अहमदाबाद यह भारत आज नहीं युग से, नारी से रहा न खाली है। नारी के ही कारण इसकी, गौरव गरिमा बलशाली है। महान् ऋषि-मुनियों की तपोभूमि विश्व को अद्वितीय संस्कृति प्रदान करने वाली “जियो और जीने दो" का अहिंसा का संदेश फैलाने वाली ये भारत की वसुंधरा पर ब्राह्मी, सुंदरी और चंदना जैसी अनेक नारी रत्नों ने जन्म लिया है। इसी परम्परा में तीर्थंकरों की जन्मभूमि अयोध्या के पास बाराबंकी जिले के टिकैतनगर गाँव में जन्म लेने वाली मैना आज परम पूज्य गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी बन, सिर्फ भारत में ही नहीं, पूरे विश्व में सम्यग्ज्ञान की ज्ञानगंगा बहा रही है। इस महान् वंदनीय विभूति के कारण जैन समाज ही नहीं, अपितु भारत देश गौरवान्वित है। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी द्वारा जम्बूद्वीप ज्ञानज्योति रथ का प्रवर्तन होने से हस्तिनापुर तीर्थ-क्षेत्र को भारत के ही नहीं, वरन् विश्व के नक्शा में फिर से उज्ज्वल स्थान प्राप्त होने का यश पूज्या ज्ञानमती माताजी को ही है। भारत के विविध स्थलों पर आपकी प्रेरणा से दिगंबर जैन त्रिलोक शोध संस्थान ने छोटे-बड़े प्रादेशिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय शिविर, सेमिनारों के आयोजन द्वारा और परीक्षा बोर्ड द्वारा आध्यात्मिक शिक्षण तथा भगवान महावीर के सिद्धान्तों की अपूर्व लहर फैला दी। भक्तों को भक्ति में तन्मय रखने के लिए आपने इन्द्रध्वज, कल्पद्रुम, तीनलोक, सर्वतोभद्र विधान आदि वृहद् पूजन विधानों की रचना करके जैन समाज के ऊपर बहुत बड़ा उपकार किया है। Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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