SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 173
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ [१४७ "बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो बताय" - मनोज कुमार जैन एवं मातेश्वरी श्रीमती आदर्शजैन, हस्तिनापुर सन् १९७५ की बात है जब हम लोग सपरिवार सिद्धचक्र विधान करने के लिए बड़ौत से हस्तिनापुर आए थे। परमपूज्य गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी ससंघ हस्तिनापुर के प्राचीन मन्दिर पर विराजमान थीं। हमने विद्वान् के विषय में मन्दिर पर चर्चा की तो ज्ञात हुआ कि माताजी के संघ में ब्र० श्री मोतीचंदजी एवं ब्र० श्री रवीन्द्र कुमारजी अच्छे विद्वान् हैं। हम सभी ने पूज्य माताजी के पास जाकर अपना सिद्धचक्र विधान कराने की इच्छा व्यक्त की और उनसे निवेदन भी किया कि आपके संघ सानिध्य में हमारा पाठ निर्विघ्न सम्पन्न होवे इसके लिए हम आपके संघस्थ विद्वानों का सहयोग चाहते हैं। हमारे परिवार का यह आकस्मिक निवेदन पूज्य माताजी ने इस प्रकार स्वीकार किया जैसे मानो हम उनके चिर परिचित भक्त हों। असीम वात्सल्य एवं करुणा से परिपूर्ण उनका आभामयी मुखमण्डल हमारे परिवार के लिए एक चुम्बकीय आकर्षण बन गया। माताजी के आशीर्वाद एवं संघ सानिध्य में हमारा मण्डल विधान तो निर्विघ्न सम्पन्न हुआ ही तब से हमारा पूरा परिवार पूज्य माताजी का परमभक्त बन गया। माताजी की प्रत्येक आज्ञा का पालन करना अब हम लोगों का नैतिक कर्तव्य बन गया। बड़ौत से हमारा मन कुछ उखड़ रहा था। माताजी के सामने चर्चा आई तो उनकी आज्ञा मिली कि "आप लोग हस्तिनापुर आ जाओ।" जगन्माता की उस प्रथम आज्ञा को शिरोधार्य कर हम लोग हस्तिनापुर सेण्ट्रल टाउन हस्तिनापुर में आकर रहने लगे और माताजी के दर्शन करके अपने जीवन को धन्य समझने लगे। आज हम लोग जो कुछ भी हैं पूज्य माताजी के आशीर्वाद व सद्प्रेरणा का ही फल है। धानतरायजी ने कहा भी है गुरु की महिमावरणी न जाय, गुरू नाम जपो मन वचन काय । अर्थात् गुरु की महिमा का वर्णन कौन कर सकता है? उन्हें तो सदैव मन, वचन, काय से नमस्कार करना चाहिए। हमें प्रसन्नता है कि माताजी की कृपा प्रसाद से हमारे परिवार में धार्मिकता के अटूट संस्कार हैं, घर में भगवान आदिनाथ का चैत्यालय है, जिससे छोटे बच्चों में भी जिनेन्द्र भक्ति का प्रवाह रहता है। कबीरदास जी ने गुरु की उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए कहा है गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागू पाय । बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दियो बताय।। अर्थात् गुरु ही जीवन रूपी नैया को भव पार कराने वाले हैं। हमारी पूज्य माताजी ऐसी ही भवदधितारिका है। हम उनके प्रति यही विनय करते हैं कि माताजी अनंत-अनंत वर्षों तक ज्ञानपुञ्ज के रूप में विराजमान रहें, उनकी वाणी अनन्त काल तक लोगों को भव से पार उतारती रहे, संसारी भव्य प्राणियों को मोक्षमार्ग मिलता रहे तथा हमारे परिवार के ऊपर सदैव माताजी का अनुग्रह बना रहे। "इति शुभम्" "मन के अँनधेरे प्रकाश में बदल गए" - महेन्द्र कुमार जैन, खतौली मैं पूर्व जन्म से प्राप्त संस्कारों पर विश्वास करने वाला व्यक्ति हूँ। मेरा जन्म भी जैन परिवार में हुआ, वहाँ भी मैंने जैन संस्कार अर्जित किये। मैं बचपन में अपने घर पर मुनियों का "आहार" देखा करता था तो मेरे पूर्व जन्म के संस्कार मुझे आनन्द से भर दिया करते थे। भौतिक जीवन Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy