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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
इस दुःखद पंचमकाल में साक्षात् तीर्थंकर भगवानों के दर्शन तथा दिव्य ध्वनि का श्रवण कालदोष से असम्भव है, फिर ज्ञानज्योति प्राप्ति के लिए तीर्थंकर की परोक्ष वाणी (जिनआगम) पूज्या माताजी के रचे अनेक ग्रन्थों द्वारा आज उपलब्ध बन सकी है।
गत ३०-४० वर्षों से गुजरात में एकान्तवाद का जन्म होकर वह इस तरह प्रचलित हुआ जिससे दिगम्बर जैनों में आगम प्रणीत ज्ञान, धार्मिक संस्कार, पूजा भक्ति, जप-तप, त्याग, यम नियम, संयम तथा वीतरागी निग्रन्थ गुरु के प्रति भक्ति, श्रद्धा की अवहेलना होने लगी थी। इस एकान्तवाद का सामना करने के लिए गुजरात का समाज कोई समर्थ विद्वान् तथा सरल आर्ष आगम साहित्य के अभाव में असमर्थ रहा। ऐसी विषम अवस्था में हस्तिनापुर जम्बूद्वीप से सन् १९८६ में बाल ब्रह्मचारिणी कुमारी माधुरीजी पर्यूषण पर्व के निमित्त से अहमदाबाद पधारीं । उनके अत्यन्त प्रभावशाली प्रवचन, पूजा अभिषेक की पद्धति तथा उनके द्वारा माताजी रचित आगम अनुसार सरल भाषा में साहित्य लाये जाने से समाज खूब प्रभावित हुआ और पू० माताजी के आशीर्वाद से तथा कु० माधुरीजी की प्रेरणा से अहमदाबाद में गुजरात दि० जैन सांस्कृतिक साहित्य प्रचार प्रशिक्षण केन्द्र संस्था की स्थापना की गयी और अहमदाबाद में त्रिलोक शोध संस्थान की तरफ से विशाल शिक्षण शिविर का आयोजन करने का निश्चय किया गया। इस प्रकार माताजी के आशीर्वाद से गुजरात में आगम प्रणीत साहित्य तथा जप, तप, उपवास, व्रत, पूजा, विधान आदि की फिर से स्थापना हुई। आगम प्रणीत ज्ञान का प्रचार करके आर्ष दिगम्बर जैन आगम प्रमाणित स्याद्वाद अनेकांत धर्म के प्रति फिर से समाज में जागृति तथा श्रद्धा स्थापित की गयी। यह सब पूज्या माताजी के साहित्य तथा बाल ब्र० कु० माधुरीजी [अब आर्यिका चंदनामती] की प्रेरणा से हुआ जिसके लिए गुजरात का समाज हमेशा के लिए माताजी का ऋणी रहेगा।
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इस प्रकार से ज्ञानमती माताजी ने अपने जीवन में साहित्य सृजन का कार्य किया, वह गौरव का विषय है। ऐसी त्यागमयी तथा शान्ति की साक्षात् मूर्ति पू० माताजी के चरणों में शतशः नमन ।
ज्ञान की माता ज्ञानमती ने भागीरथ प्रयास किया
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जहाँ पहुँचते ही दर्शक का, होता पाप शमन है। परम हस्तिनापुर तीरथ को, सौ-सौ बार नमन है।
हस्तिनापुर निश्चय ही गौरवशाली पुण्यभूमि है। यह भारतवर्ष के इतिहास में एवं वर्तमान में भी सदैव ही महत्त्वपूर्ण नगर के रूप में अंकित रहा है। एक ओर जहाँ इसका ऐतिहासिक महत्व है दूसरी ओर यहाँ यह धार्मिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है।
वर्तमान में परम श्रद्धेया प्रातः स्मरणीया १०५ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी ने अपनी अपूर्व धर्म प्रभावना के द्वारा इस क्षेत्र को जो गौरवशाली स्थिति प्रदान की है, वह न केवल जैन समाज के लिए ही महत्त्वपूर्ण है, बल्कि समस्त प्रदेश एवं देश के लिए भी महत्त्वपूर्ण है। माताजी की अपूर्व साधना, विलक्षण प्रतिभा, सुदृढ़ निष्ठा, लगन एवं रुचि के कारण ही जम्बूद्वीप की स्थापना व रचना का कार्य पूरा हो पा रहा है, जो कि अब तक केवल शास्त्रों में ही अंकित था।
परम श्रद्धेया माताजी जैन साध्वी परम्परा की उन दिव्य विभूतियों में से एक है जिन्होंने भगवान् जिनेन्द्र देव के पथ का अनुसरण करते हुए मानव कल्याण को ही अपने जीवन में प्रमुखता दी । ज्ञान साधना के द्वारा जहाँ उन्होंने अपनी आत्मा को उन्नत एवं ज्ञानालोक से उद्भाषित किया वहाँ उपदेशों एवं प्रन्थों की रचना कर उनके अध्ययन करके अनेकानेक व्यक्तियों ने अपने जीवन निर्माण एवं आत्म-कल्याण की राह बनायी माताजी द्वारा रचित इन्द्रध्वज विधान, कल्पद्रुम विधान, जम्बूद्वीप विधान अब पूरे भारतवर्ष में कहीं न कहीं होते ही रहते हैं, जिनके द्वारा केवल जैन समाज का ही नहीं, बल्कि समस्त प्राणीमात्र का बड़ा उपकार होता है।
इसके अतिरिक्त पूजनीया माताजी ने अनेकानेक ग्रन्थों की एवं विधानों की रचनाकर, आज जो समाज के लिए बहुत जरूरी था, एक महान् उपकार किया है। जो एक बार माताजी के दर्शन कर लेता है वह हमेशा के लिए आपका अनुगामी, प्रशंसक एवं पुजारी बन जाता है। आपने समाज के युवावर्ग को ज्ञान की राह दिखाकर तथा जिनवाणी के प्रति उनके हृदय में सच्ची श्रद्धा उत्पन्न कर सन्मार्ग दिखाया है। सच ही कहा है
- पवन कुमार जैन, सरधना
"ज्ञान की सागर ज्ञानमति ने, भागीरथ प्रयास किया । जैन शास्त्र का मंथन कर, कर ज्ञानामृत को खूब दिया ।
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