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________________ १४२] वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला माताजी का सम्मान समाज का सम्मान -हीरालाल रानीवाला, जयपुर [राज०] यह जानकर बहुत ही खुशी हुई कि गणिनी आर्यिकारत्न विद्या वाचस्पति १०५ ज्ञानमती माताजी का अभिवंदन ग्रंथ प्रकाशित होने जा रहा है। वैसे तो इस ज्ञान के सूर्य को प्रकाश क्या दिखाया जा सकता है, परंतु ऐसे गुणीजनों के गुणगान करने से समाज को ज्ञान का रास्ता दिखाया जा सकता है। वास्तव में इनका सम्मान समाज का सम्मान है। जम्बूद्वीप की रचना इनका प्रथम कार्य था, जो एक बहुत ही छोटे रूप में ब्यावर में प्रारंभ किया गया था, आज भी माताजी के स्मारक के रूप में वहाँ विद्यमान है, जिसका कि बड़ा रूप श्री हस्तिनापुर में जगत्विख्यात हो रहा है। दूसरा महत्त्वपूर्ण कार्य अष्टसहस्री जैसे क्लिष्ट व्याकरण के ग्रंथ का हिन्दी में अनुवाद कर छपवाने का कार्य भी जब पू० माताजी ब्यावर में चातुर्मास कर रही थीं, तब प्रारंभ किया गया था, जो बाद में एक बहुत विशाल वटवृक्ष ग्रंथमाला के रूप में आज फल-फूल रहा है और उसके कई पुष्प जैन धर्मावलंबियों में प्रख्यात हैं। प्रभु से प्रार्थना है पूज्या माताजी को दीर्घायु दें, ताकि वे अपने ज्ञान की ज्योति को लंबे समय तक प्रज्वलित रखें, जिसके प्रकाश में समाज व विश्व का उद्धार हो। उनके चरणों में मेरे बारंबार त्रिकाल नमस्कार अर्ज करें। माताजी का कृतज्ञ जैन समाज - शांतिलाल बड़जात्या, अजमेर जैन विश्व की महान् परोपकारी माताजी श्रीमद् परमपूज्या, प्रातःस्मरणीया, बालब्रह्मचारिणी, विदुषी रत्न, आर्यिकारत्न गणिनी १०५ श्री ज्ञानमती माताजी के दिगम्बर जैन समाज पर कई उपकार हैं, जिनमें जम्बूद्वीप की पावन प्रेरिका के रूप में तो समस्त जैन समाज उनका श्रद्धा एवं भक्तिपूर्वक स्मरण करता रहेगा। इसके अतिरिक्त उन्होंने परम पूज्या चारित्र चक्रवर्ती १०८ श्री आचार्य श्री शान्ति सागरजी महाराज की भांति इस शताब्दी में उनके गृहस्थ परिवार ने महाव्रत धारण करने में जो अपूर्व उदाहरण प्रस्तुत किया, उसमें प्रेरणा माताजी की ही है। अपनी ओर से परमपूज्या गणिनी आर्यिका रत्न श्री ज्ञानमती माताजी के उत्तम स्वास्थ्य एवं श्रेष्ठ रत्नत्रय की जिनेन्द्र भगवान् से मंगलकामना करते हुए उनके पावन चरणों में वन्दामि करता हूँ। विनयांजली - नेमीचंद बाकलीवाल, इन्दौर मुझे यह जानकर बहुत ही प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है कि परमपूज्य १०५ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमति माताजी को अभिवंदन ग्रंथ भेंट किया जा रहा है। मुझे उनका प्रथम सानिध्य सनावद में प्राप्त हुआ था और उनके ओजस्वी प्रवचन सुनने का अवसर मिला। उसके पश्चात् देहली में धर्मपुरा तथा शाहदरा, मेरठ, हस्तिनापुर आदि स्थानों पर भी सम्पर्क का परम सौभाग्य प्राप्त हुआ। उनके द्वारा जैनधर्म एवं जिन शासन की प्रभावना से मैं बहुत ही प्रभावित हुआ, पूज्य माताजी ने जम्बुद्वीप, ज्ञानज्योति रथ का प्रवर्तन सारे भारतवर्ष में कराया है। जब ज्ञान ज्योति रथ का इंदौर में आगमन हुआ, तब नगर भ्रमण प्रचार व प्रसार का सारा कार्य मेरी अध्यक्षता में ही सम्पन्न हुआ था, जो कि एक ऐतिहासिक कार्य था। यह मेरे लिए सदैव अविस्मरणीय रहेगा। पूज्य माताजी का व्यक्तित्व ज्ञानज्योति स्वरूप एवं परम प्रभावी है। आपकी ओजपूर्ण वाणी अत्यन्त प्रिय एवं मैद्धान्तिक है तथा रत्नत्रय प्राप्त कराने वाली है। आप जैसी महान् आर्यिकारत्न ने जैन समाज की ही नहीं, अपितु विश्व के प्राणीमात्र का परम उपकार किया है। मैं माताजी के प्रति हार्दिक विनयांजलि अर्पित करता हूँ एवं भगवान जिनेन्द्रदेव से प्रार्थना करता हूँ कि वे अपना स्वसमय रत्नत्रय कुशल रखते हुए देश, समाज, जैन धर्म की प्रभावना करती रहें और चिरायु हों। Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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