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________________ १३८] वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला अद्वितीय प्रतिभा - राजकुमार सेठी, कलकत्ता यह जानकर अत्यन्त प्रसन्नता हुई कि जम्बूद्वीप निर्माण की पावन प्रेरिका परम पूज्य गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी को समर्पण करने के लिए एक अभिवन्दन ग्रन्थ का प्रकाशन किया जा रहा है। परम पू० माताजी के विषय में लिखना असम्भव है। उनके द्वारा वर्तमान में दिगम्बर जैन समाज के लिए जो कार्य किया गया है, वह ऐतिहासिक है। मेरा तो पू० माताजी से पिछले बीस वर्षों से निरन्तर सम्पर्क रहा है। जम्बूद्वीप के लिए किये गये दोनों ही पंचकल्याणक में भाग लेने का मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ था। माताजी ने जो कार्य किये हैं , वे सारे के सारे अद्वितीय हैं। जिसमें जम्बूद्वीप, ज्ञानज्योति की भारत यात्रा एक अद्भुत प्रयास था। जिसमें समग्र जैन समाज को एक सूत्र में बाँधने का महान् प्रयास था। उनकी जन्म जयन्ती पर मैं अपनी हार्दिक विनयाञ्जलि देकर अपने आपको गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ। माताजी शतायु हों और इसी तरह जैन समाज का कल्याण करती रहें। यही भावना है। सरिता बन गई सागर - धर्मचन्द मोदी, ब्यावर भौतिकता से परिपूर्ण जीवन पद्धति के इस युग में मानवीय मूल्यों का जो ह्रास हो रहा है, उसको नियंत्रित करने के लिए यह आवश्यक हो गया है कि प्राचीन भारतीय संस्कृति से ओत-प्रोत त्यागियों, तपस्वियों एवं शलाका पुरुषों के जीवन-वृत्त को इस तरह उजागर किया जाये कि दिशा-हीन मानव समाज में बदलाव आ सके और विनाश के कगार पर खड़ी दुनिया को त्राण मिल सके। मुझे यह जानकर अतीव प्रसन्नता हो रही है कि श्रद्धालु भक्तों, धर्मानुयायियों द्वारा युग की महान् धरोहर श्रद्धा-ज्ञान-चारित्र की त्रिवेणी, जैन वाङ्मय के तत्त्वों को जन-जन के लिए प्रेरणास्पद, सरस, सुबोध साहित्य सृजन करने वाली परम विदुषी आर्यिकारत्न परम पूज्या ज्ञानमती माताजी के अभिवन्दन ग्रन्थ का प्रयास न केवल सराहनीय है, अपितु अपने कर्तव्य के प्रति उत्तरदायित्व का परिचायक है। इन महान् विभूति का सानिध्य ब्यावर नगर को भी करीब ३४ वर्ष पूर्व सन् १९५८ में परम तपस्वी १०८ आचार्य श्री शिवसागरजी महाराज के साथ चातुर्मास काल में तथा उसके पश्चात् भी पुनः प्राप्त हुआ। लम्बी अवधि तक ब्यावरवासियों को आपके सानिध्य का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपके ज्ञान की गरिमा और साधु जीवन की आगमसम्मत चर्या को देखकर आश्चर्यचकित रह जाते थे। आपके ज्ञानार्जन की रुचि के कारण ही स्थानीय दस हजार से अधिक धर्म ग्रन्थों के संग्रह वाला ऐलक पन्नालाल दिगम्बर जैन सरस्वती भवन का शास्त्र-भण्डार आपके प्रवास की लम्बी अवधि तक बनाये रखा। समाज ने भी भक्तिपूर्वक आपके चरणों का सानिध्य प्राप्त करते रहने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कहावत है कि पूत के लक्षण पालने में ही दृष्टिगत हो जाते हैं। मेरे जैसे व्यक्ति के जीवन को भी धर्ममार्ग पर बने रहने में आपकी विशेष भूमिका रही है, जिसके लिए मैं स्वयं आपका पूर्ण कृतज्ञ हूँ। सन् १९७२ में ब्यावर से बिहार के पश्चात् धर्म प्रभावना करते हुए आप दिल्ली पधारी। दृढ़ आस्था की धनी और जैन-संस्कृति की रक्षक होने के कारण आपकी भावना हस्तिनापुर में पल्लवित और पुष्पित हुई। ब्यावरवासी इसे अपना सौभाग्य समझे बिना नहीं रह सकते कि हस्तिनापुर (मेरठ) में निर्मित जम्बूद्वीप की रचना जो आज विश्व भर के भौगोलिकों, वैज्ञानिकों, प्राच्य अध्येताओं के आकर्षण का केन्द्र बन गई है, उस भव्य एवं चित्ताकर्षक जम्बूद्वीप रचना की भाव-भूमिका बीजारोपण ब्यावर नगर में ही हुआ था। इस रचना और दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान तथा वहाँ के भव्य जिनालय ने भारत प्रसिद्ध तीर्थ की मान्यता एवं विकास में चार चाँद लगा दिये हैं। पूज्या माताजी की प्रेरणा से जम्बूद्वीप रचना के ज्ञानज्योति रथ का प्रवर्तन सन् १९८२ में भारत की तत्कालीन साहसिक प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी के कर कमलों द्वारा दिल्ली से हुआ। इसके सम्पूर्ण भारत में भ्रमण से जैन धर्म की अभूतपूर्व प्रभावना हुई । जैन समाज द्वारा तन-मन-धन से उत्साहपूर्वक, समर्पित भावना से जहाँ सहयोग प्रदान किया गया। वहीं अजैन जनता तथा सरकार द्वारा भी अपनी उपस्थिति व व्यवस्था से इस प्रवर्तन काल में सहयोग प्रदान किया गया। मैं राजस्थान प्रान्त का संयोजक था और करीब-करीब पूरे राजस्थान तथा उसके अतिरिक्त पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, बिहार आदि प्रान्तों के कुछ क्षेत्र में प्रवर्तन के टार-साथ रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इस भ्रमण में जो निष्ठा, लगन, उत्साह एवं अभूतपूर्व स्वागत जनता द्वारा दिया गया उसका जतनी प्रशमा का जाये, कम है। Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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