SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 162
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३६ ] वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला आया, संभवतः उनका सरदार था । माताजी के दर्शन किए, थोड़ी देर बातचीत की, पूज्या माताजी से इतना प्रभावित हुआ कि ४-५ कि०मी० तक माताजी के साथ पैदल चला । पुनः आशीर्वाद लेकर वापस चला गया। आगे के गाँववालों ने प्रातः शौच क्रिया हेतु जाते हुए हम लोगों के साथ उस व्यक्ति को देखा, सभी सहम गए, काँप गए। जब वह वापस चला गया तो गाँववालों ने उसके खूँखार होने की बात बताई, बोले देखते ही गोली मार देता है पू० माताजी ने हँसते हुए बताया कि उसने हिंसा करने का त्याग कर दिया है। ऐसी-ऐसी चामत्कारिक घटनाओं से भरा पड़ा है माताजी का जीवन विहार में प्रतिदिन सैकड़ों व्यक्ति माताजी के दर्शन करते, उपदेश सुनते, मधुमांस शिकार आदि का त्याग कर यथाशक्ति व्रत ग्रहण करते धन्य है ऐसा परोपकारी जीवन । पूज्या माताजी विश्व की धरोहर हैं, चलती-फिरती तीर्थ हैं, जिसने ऐसी माताजी से लाभ नहीं लिया उसका जीवन व्यर्थ है। आज हम सोचते हैं, भगवान्, जिस समय केवली भगवानों का समवसरण चलता था उस समय हम कहाँ थे, क्यों नहीं हम केवली भगवान् की शरण में गए, क्यों नहीं हमारा उद्धार हुआ। साक्षात् केवली के अभाव में उनकी पथगामी सरस्वती की अवतार पूज्या माताजी हैं। क्यों न आप हम उनके शरण में आकर अपना उद्धार कर लें । पूज्या माताजी के चरणों में कोटिशः नमन करते हुए भावना भाता हूँ कि जब तक सूरज चाँद रहे, माँ ज्ञानमती की छाह रहे। कोटिशः नमन । वात्सल्यमूर्ति Jain Educationa International शत शत वंदन "जो बतलाते नारी जीवन लगता मधुरस की लाली है। वह त्याग तपस्या क्या जाने कोमल फूलों की डाली है । जो कहते योगों में नारी नर के समान कब होती है। ऐसे लोगों को ज्ञानमती का जीवन एक चुनौती है ॥" - अमरचन्द जैन, होम ब्रेड, मेरठ पूज्य आर्यिका रत्न श्री ज्ञानमती माताजी इस भोग प्रधान युग में श्रद्धा और चारित्र्य से डगमगाती हुई इस धार्मिक जनता में अपनी प्रभावक वाक्शक्ति और तपपूर्ण दर्शन के द्वारा जो सारभूत आत्मबोध करा रही हैं वह वर्तमान भौतिक युग के लिए एक कटु एवं सत्यपूर्ण चुनौती है। युग को ऐसे निर्भीक, सदाचारी एवं मृदु व्यवहार कुशल सदुपदेष्टाओं की महती आवश्यकता है। दीपक जिस प्रकार स्वयं जलकर भी दूसरों को प्रकाश प्रदान करता है, चंदन विषधरों के द्वारा इसे जाने पर भी सुगन्धि ही बिखराता है उसी प्रकार परम श्रद्धेय ज्ञानमती माताजी ने सदैव परोपकार में ही अपने जीवन की सार्थकता मानी है। आज मैं जो कुछ भी हूँ, वह सब परम पूजनीय माताजी का मंगल आशीर्वाद ही है। वात्सल्यमूर्ति माताजी की चरित्र के प्रति दृढ़ता और आत्मा के प्रति कठोरता प्रत्यक्ष रूप में जो मैंने देखी है, वह कभी-कभी मेरे हृदय में उद्वेग पैदा कर देती है। मैं सोचने लगता हूँ कि क्या ऐसी कठोर तपस्या मानव जीवन के लिए अन्याय नहीं है, किन्तु तुरन्त ही माताजी की पर्वतीय दृढ़ता का स्मरण कर नतमस्तक हो जाता हूँ । आर्यिका र परम पूज्य श्री ज्ञानमती माताजी परम पावन, परम दृढ़ता, परम तपखिता एवं परमगंभीरता की पुंज हैं। मैं अपनी एवं समस्त होमब्रेड परिवार की ओर से ऐसे गुरु के शतजीवी होने की, अमर मंगलकामना करता हुआ उनके श्रीचरणों में शत शत विनयांजलि अर्पित करता हूँ। शत शत वंदन । For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy