SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३४] वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला "धन्य यहाँ की माटी है" -प्रकाशचन्द जैन प्रबंधक : श्रीरत्नमती बाल विद्या मंदिर, टिकैतनगर इन्द्र की आज्ञा से धनकुबेर द्वारा रची गई अवध प्रान्त की अयोध्या नगरी, जिसे सौभाग्य प्राप्त है, अनेक तीर्थंकरों को जन्म देने का। इसी नगरी के समीप टिकैतनगर में माँ मोहिनी देवी की कुक्षि से जन्म लेने वाली एक छोटी-सी बालिका, आप सबकी तरह अपने माँ-बाप की दुलारी, सखी-सहेलियों के बीच खेली, अपने १६ वसंतों को पार कर चुकी थी। माता-पिता ने सभी की तरह आपकी शादी की तैयारी शुरू की। आप सबकी तरह ही तो खेला करती थीं। पर यह क्या ? आपने तो शादी से इंकार कर दिया। बाल ब्रह्मचारिणी रहने का संकल्प ले लिया। कोई नहीं जानता था कि यह नन्हीं बालिका कु० मैना हम सबके देखते-देखते बगैर शादी किए, बिना किसी पुत्र को जन्म दिए, असंख्य पुत्रों की माता बन जायेंगी, जगन्माता कहलायेंगी। अपने ज्ञान-ध्यान से सम्पूर्ण साधुओं में अधिक विद्वान् बनकर साधु शिरोमणि कहलायेगी। भारत ही क्या जिनके चरणों में विदेश से लोग अपनी-अपनी शंकाओं का समाधान पाने हेतु आते हों। तभी तो भारत के जैन साधुओं का मस्तक गौरव से ऊँचा है। अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी पूज्या ज्ञानमती माताजी ने सैकड़ो ग्रन्थों की रचना कर साधु समाज व जैन समाज पर बहुत बड़ा उपकार किया है। साधु समाज व जैनाजैन समाज पर आपकी विद्वत्ता का वर्चस्व है, तो मासूम छोटे-छोटे असंख्य-नन्हें मुन्ने, भैया-बहन आपका प्यार पाने से क्यों वंचित रह जायें। ऐसा सोचकर साक्षात् सरस्वती का अवतार पूज्या माताजी ने अपनी लेखनी से बाल-सुकुमारों को सचित्र बाल पाकेट उपन्यास देकर उन्हें आह्लादित कर दिया। आप जैनाजैन समाज, साधु समाज तक ही सीमति हों ऐसा भी नहीं है। राजनैतिक क्षेत्र में आपका कितना आदर है। आपके त्यागमयी जीवन से प्रभावित होकर भारत की पूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्रीमती इन्दिरा गाँधी, पूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्री राजीव गाँधी, वर्तमान प्रधानमंत्री श्री पी०वी० नरसिंह राव, केन्द्रीय मंत्री श्री माधवराव सिंधिया, पूर्व मुख्यमंत्री श्री नारायणदत्त तिवारी आदि अनेक शीर्षस्थ नेताओं ने आपके दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किया। धन्य है ऐसी माटी, जिसने ऐसा फूल खिलाया जिसकी महक विश्व के कोने-कोने में पहुँच गई। विश्व का सम्पूर्ण जैन जगत् आपकी विद्वत्ता, आपका आदर्श, त्याग, आपकी आगम के प्रति निष्ठा, आपकी वात्सल्यता देखकर यही भावना करता है कि ऐसी पूज्या माताजी का वरदहस्त हम पर हमेशा बना रहे। पूज्या माताजी का हृदय वात्सल्य से भरा है, आपने अनेक महिला कुमारियों एवं पुरुषों को कोशिश करके घर से निकाल कर उनका उद्धार कर दिया, उन्हें तब तक प्रेरणा देती रहती जब तक आत्मकल्याण के मार्ग पर लगा न देतीं। वर्तमान में स्वर्गीय पूज्य श्री अजितसागरजी महाराज, वर्धमानसागरजी, क्षु० मोतीसागरजी, आर्यिकाओं में पूज्या पद्मावतीजी, जिनमतीजी, आदिमतीजी, अभयमतीजी, शिवमतीजी, रत्नमतीजी, श्रद्धामतीजी, चन्दनामतीजी, ब्र० रवीन्द्र कुमारजी, कु० आस्था, कु० बीना आदि सब आपकी ही देन हैं। पूज्य पिताजी कहा करते थे कि माताजी में ऐसी चुम्बकीय शक्ति है कि जो भी माताजी के पास जाता है, उन्हीं का हो जाता है। पूज्या माताजी का ज्ञान अलौकिक है, आपने श्रवणबेलगोला में भगवान् बाहुबली के चरणों में ध्यान लगाकर अपने तप के प्रभाव से जम्बूद्वीप, सुमेरुपर्वत के दर्शन किए, जिसे हस्तिनापुर में साक्षात् निर्माण करवाकर देश को विश्व का आठवाँ आश्चर्य दिया। इस अनोखी रचना के दर्शन कर पूज्या माताजी को लोग लाखों वर्षों तक याद करते रहेंगे। आप अमर हैं, जब तक प्रलय काल नहीं आता, तब तक हस्तिनापुर नगरी की इस मनोरम जम्बूद्वीप की रचना के दर्शन कर सभी भव्य प्राणी पूज्या माताजी को याद करते रहेंगे। आपकी प्रेरणा से सन् १९८२ में ज्ञानज्योति रथ निकाला गया, जिसका उद्घाटन माननीया प्रधानमंत्री स्व० श्रीमती इन्दिरा गाँधी द्वारा किया गया, जो लगातार ३ वर्षों तक भारत के कोने-कोने में भ्रमण करता हुआ धर्मप्रचार करता रहा। जिसके माध्यम से पूज्या माताजी द्वारा रचित ग्रंथ भारत के कोने-कोने में पहुँचा। लोगों में जिस प्रकार की जागृति आई, वह अपने में बहुत महत्त्वपूर्ण है। आज माताजी द्वारा रचित विधान भारत के कोने-कोने में हो रहे हैं, भक्तगण विधान करते-करते पूजन की पंक्तियाँ पढ़ते-पढ़ते ऐसे भावविभोर हो जाते हैं कि कुछ समय के लिए अपना सब कुछ भूलकर अपने को भगवान् के चरणों में पाते हैं। ऐसी रस भरी पंक्तियों को पढ़कर ऐसा झूम उठते हैं कि कब उनके पैर थिरकने लगते हैं, भगवान् के समक्ष भक्ति से झूमकर नाच उठते हैं। माँ ज्ञानमती की जय-जयकार करते हुए नहीं अघाते, उनके हर्षाश्रु बहने लगते हैं। लोग सोचते हैं कि इसके पूर्व भी तो काफी विधान होते थे, पर पूज्या माताजी द्वारा रचित विधानों में तो ऐसा जादू Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy