SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 158
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३२] वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला प्राचीन काल में समय-समय पर आचार्य परम्परा में जैनागम की प्राकृत संस्कृत भाषा में रचनायें होती रहीं। इस समय प्राकृत-संस्कृत भाषा का अध्ययन करने वाले, समझने वाले बहुत कम विद्वान् रहे हैं। ऐसे समय में पूज्य गणिनी आर्यिकाश्री ज्ञानमती माताजी ने भविष्यकाल की संध्या की ओर दृष्टिक्षेप रखकर अत्यंत सरल हिंदी भाषा में मूल आगम के सिद्धांत के अनुसार चारों अनुयोगों के कई शास्त्रों का प्रकाशन किया। साहित्य प्रकाशन का यह महान् कार्य-आर्ष परम्परा की रक्षा की ज्योति भविष्य में भी उज्ज्वलता से जगमगाती रहेगी- समाज को सन्मार्ग पर धर्म की प्रभावना हेतु कायम स्थिर रखने में भविष्य में भी निश्चित रूप से महान् फलदायी रहेगी यह हम सभी के लिये गौरव की बात है। तीर्थंकरों की परमपावन जन्मभूमि हस्तिनापुर क्षेत्र पर जम्बूद्वीप का विशाल निर्माण कार्य- इस कारण जैन भूगोल शास्त्र एवं ज्योतिर्विज्ञान का विश्व में संशोधन हेतु सहायक बनेगा। जैन धर्म की प्राचीनता की छाप भविष्य में भी कायम रहेगी। ऐसी महान् आर्यिका ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा से हम सभी को सामाजिक कार्य में भी प्रेरणा मिलती रही है- आपकी कार्य की महानता शब्दों में अंकित नहीं की जा सकती। पूज्य माताजी को शत शत वंदन ! लगन की धनी आर्यिका ज्ञानमती माताजी - भगतराम जैन मंत्री : अ०भा० दिगंबर जैन परिषद, दिल्ली लगभग ३० वर्ष पूर्व जिस समय आपने "जम्बूद्वीप" के मॉडल का कार्य ब्यावर (राज.) में प्रारम्भ किया था, उस समय स्व० लाला परसादीलाल पाटनी द्वारा आपका परिचय प्राप्त हुआ था, बाद में वह दिल्ली आ गईं; तब से मुझे पूज्य माताजी के अनेक बार दर्शन करने का अवसर मिला। भगवान महावीर के २५००वें निर्वाण दिवस के कार्यों में आपका हर प्रकार से सहयोग प्राप्त हुआ। साहित्य प्रकाशन कर प्रचार-प्रसार किया। श्री हस्तिनापुर तीर्थ क्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष रायसाहब उलफतरायजी ने क्षेत्र के महामंत्री बाबू सुकुमार चंदजी को दिल्ली बुलाकर कहा कि आप आर्यिका ज्ञानमती से मिलकर "जम्बूद्वीप" का कार्य हस्तिनापुर में करायें। वे पू० माताजी से मिले, विचार विमर्श होकर माताजी हस्तिनापुर आ गईं। इनके हृदय की लगन का यह परिणाम है कि आज "जम्बूद्वीप" विशाल रूप धारण किये हुए है। बड़ी संख्या में यात्री आते हैं, हर प्रकार की सुविधायें उपलब्ध हैं। इस कार्य को सफल बनाने में इनके सभी सहयोगी बधाई के पात्र हैं। पूज्य माताजी को उनकी लगन के लिए श्रद्धा के सुमन अर्पित करता हूँ। शुभकामना - रत्नकान्त फडे - अध्यक्ष बी०बी० पाटील - कार्याध्यक्ष आर०पी० पाटील - महामंत्री : दक्षिण भारत जैन सभा, सांगली, डॉ० सुभाषचन्द्र अक्कोले, संपादक : प्रगति आणि जिनविजय, साप्ताहिक मुखपत्र द०भा० जैन सभा, सांगली [महाराष्ट्र] गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवंदन ग्रंथ के लिए हमारी शुभकामना। पूज्य माताजी का कार्य हस्तिनापुर तीर्थस्थल पर जम्बूद्वीप का निर्माण के रूप में अमर बना है। उनके जीवन वृत्त, साहित्य रचना, धर्मप्रचार आदि का परिचय इस अभिवंदन ग्रन्थ से राष्ट्र को होगा। इसके लिए हमारी शुभ कामनाएँ एवं पूज्य माताजी को त्रिबार वन्दन ! Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy