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गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ
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आज समाज के धर्मनिष्ठ महानुभाव विभिन्न स्थानों पर समय-समय पर विधानों का आयोजन कर अपने को कृत-कृत्य कर रहे हैं तथा आनन्द का अनुभव ले रहे हैं।
धर्म के प्रचार एवं प्रसार हेतु माताजी के शुभाशीर्वाद एवं सत्प्रेरणा से "सम्यग्ज्ञान" मासिक पत्रिका का प्रकाशन भी गत १८ वर्षों से हो रहा है, जिसमें कि माताजी के सारगर्भित लेख एवं संस्थान की गतिविधियों का अवलोकन विवाद रहित होकर कराया जाता है, ताकि माताजी के सद् उपदेश एवं आगम वाणी को जन-जन तक पहुँचाया जा सके। यही कारण है कि आज देश एवं विदेश से भी इसकी माँग निरन्तर वृद्धि पर है।
जम्बूद्वीप स्थल पर भी माताजी की सत्प्रेरणा से विभिन्न निर्माण कार्यों को कराया जा रहा है तथा सुमेरु पर्वत एवं जम्बूद्वीप की संरचना, भगवान् महावीर का कमल मंदिर, तीनमूर्ति मन्दिर,, ज्ञानमती कला मन्दिरम् एवं यात्रियों की सुविधार्थ, फ्लैट्स, धर्मशालाएँ आदि हस्तिनापुर की ऐतिहासिक नगरी में इस निर्माण के दर्शनार्थ जनमानस उमड़ पड़ा है। यह स्थान पर्यटन का भी मुख्य केन्द्र बन चुका है, यही कारण है कि देश एवं विदेश के हजारों श्रद्धालु इसका अवलोकन कर भूरि-भूरि प्रशंसा कर रहे हैं तथा माताजी के प्रति भी अपनी अगाध श्रद्धा प्रकट करते हैं।
अतः मैं परम पिता परमात्मा से यही प्रार्थना कर रहा हूँ कि माताजी को चिरायु प्रदान करें, ताकि वे हमारे जैसे अज्ञानी प्राणियों को अपनी सत्प्रेरणा एवं ज्ञानामृत का पान कराकर सन्मार्ग की ओर चलने की प्रेरणा देती रहें, अतः इस शुभ भावना के साथ मेरा तथा परिवारजनों का उनके चरण कमलों में सादर नमोस्तु ।
"जिह्वा पर सरस्वती का निवास है" ।
- माणिकचन्द्रजी गाँधी, फलटण
परम पूज्य माताजीसे विगत ४० वर्षों से मेरा घनिष्ठ परिचय रहा है। पू० माताजी जब फलटण आयी थीं तब उन्होंने आचार्य शांतिसागर महाराज के दर्शन किये और उनसे विनयपूर्वक कुछ मार्गदर्शन लिये थे। आज मैं देखता हूँ कि पूज्य माताजी का ज्ञान इतना बढ़ गया है कि उनकी आज कोई बराबरी नहीं कर सकता। उनकी जिह्वा पर सरस्वती का निवास है।
स्व. पं० मोतीचन्द्रजी कोठारी और मेरे बीच पू० माताजी को लेकर कई बार चर्चा होती थी। तब वे कहा करते थे कि पू० माताजी के समान कोई ज्ञानी नहीं है। "अष्टसहस्री" नामक ग्रन्थ जो संस्कृत भाषा में है उसकी हिन्दी टीका आपने ही लिखी है, जो बड़ा ही अमूल्य ग्रन्थ बन गया है। पं० कोठारीजी तो यहाँ तक कहते थे कि उनकी विद्वत्ता के सामने हम कुछ भी नहीं हैं, क्योंकि जिस ग्रंथ को पढ़ने तथा समझने में हमें पसीना ही आता है उसे पू० माताजी ने बड़े ही सुलभ शब्दों में अनुवादित किया है।
सन् १९७२ में हम लोग पू० माताजी के दर्शन करने ब्यावर गये थे। वहाँ जम्बूद्वीप का मॉडल पूर्ण रूप से तैयार था। जम्बूद्वीप मॉडल को लेकर पू० माताजी से काफी चर्चा हुई। पुनः हस्तिनापुर तीर्थक्षेत्र में यह मॉडल विशाल रूप से तैयार किया गया, जो पूज्य माताजी की कृपा से ही सम्पन्न हुआ है। बहुत विशाल सुमेरु पर्वत (मानस्तंभ के समान), जो लगभग ८४ फुट ऊँचा है। पास में गंगा, सिंधु आदि नदियों को भी दर्शाया है, जिसे देखने देश-विदेश के हजारों यात्री आते हैं।
परम पूज्य माताजी से मेरी प्रार्थना है कि मेरी इस छोटी-सी विनयाञ्जलि को स्वीकार कर हमें कृतार्थ करें।
श्रद्धा और भावना की ज्योति : माता ज्ञानमतीजी
- ताराचंद प्रेमी, फिरोजपुर झिरका
यह बात लगभग सन् १९५० या ५१ की होगी, एक सामाजिक कार्यक्रम के सन्दर्भ में (रथोत्सव के अवसर पर) टिकैतनगर जाने का संयोग मिला। विविध परिचित, अपरिचित लोगों से भिन्न-भिन्न चर्चाएं हुईं, उन्हीं दिनों परम पूज्य जैनाचार्य देशभूषणजी महाराज के संघ का मंगल आगमन टिकैतनगर में होने वाला था, अतः सर्वत्र एक धार्मिक उत्साह वहां के वातावरण में विद्यमान था।
उन्हीं दिनों नगर के धार्मिक वृत्ति से परिपूर्ण स्व० लाला छोटेलालजी से मेरा परिचय हुआ। अत्यन्त विनम्र, मृदुभाषी, धार्मिक और सामाजिक प्रवृत्ति के इस व्यक्ति से मैं अत्यधिक प्रभावित हुआ।
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