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गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ
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जब मैंने जम्बूद्वीप का प्रथम दर्शन किया
-पं० प्रवीण कुमार जैन, शास्त्री
कुटेशरा [मुजफ्फरनगर]
भर्तृहरि ने कहा है
संसार कटुवृक्षस्य, द्वे फले ह्यमृतोपमे ।
सुभाषित रसास्वादः, संगतिः सुजनैर्जनैः ॥ वस्तुतः संसार महाकटु है। उसमें भी कलियुग-हुण्डावसर्पिणी काल। वर्तमान युग की भयंकरता में मानव जीवन त्रस्त हो रहा है, मानवता काँप रही है, चारों ओर अत्याचार-अनाचार, अनीति और उत्पात छाये हुए हैं।
वर्तमान काल में हुण्डावसर्पिणी काल होते हुए भी बड़ा आश्चर्य है कि जैन जगत् में जहाँ महान् तपस्वी साधु हैं। वहाँ महान् साध्वी भी पीछे नहीं हैं। आज जैन साध्वियों में यदि ऊँगली पर पहला नम्बर आता है तो आर्यिकारत्न ज्ञानमती माताजी का, जिन्होंने अपने जीवन में विपुल साहित्य का जो निर्माण किया है वह हम लोगों के लिए बड़े गौरव की बात है। परम पूज्य माताजी ने इतने महान् ग्रन्थ जैसे अष्टसहस्री, नियमसार, समयसार, कातंत्र व्याकरण आदि क्लिष्ट संस्कृत ग्रन्थों की हिन्दी एवं संस्कृत भाषा में जहाँ टीकाएँ लिखी हैं, वहीं पर युवा पीढ़ी और बालकों के हित को ध्यान में रखते हुए जैन पुराणों पर उपन्यास एवं प्राथमिक शिक्षा के साधन बालविकास, जैसी पुस्तकों की भी रचना की है।
पूज्य माताजी की मानवमात्र के हित में लेखनी चलती ही रहती है। पूज्य माताजी का उद्देश्य यही रहता है कि अधिक से अधिक प्राणियों का कल्याण हो। वे स्वास्थ्य नरम होते हुए भी कभी प्रमाद नहीं करती हैं।
आज जितनी रचनाएँ पूज्य माताजी ने की हैं उतनी रचनाएँ २५०० वर्ष के इतिहास में किसी आर्यिका ने नहीं की। इनकी लेखनी के पश्चात् तो कई आर्यिकाओं ने साहित्य सृजन प्रारम्भ कर दिया।
आगम वर्णित जम्बूद्वीप रचना की ओर किसी साधु या साध्वी का ध्यान ही नहीं गया । यदि ध्यान गया तो एक इन्हीं आर्यिकारत्न पूज्य ज्ञानमती माताजी का। आज हम लोग जो हस्तिनापुर की पावन पृथ्वी पर साक्षात् जम्बूद्वीप की रचना देख रहे हैं। वह रचना कराई किसने,पूज्य आर्यिका ज्ञानमती माताजी ने । जहाँ हर रोज हजारों नर-नारी दूर देशों से चलकर देखने आते हैं। हर समय यात्रियों का ताँता-सा लगा रहता है। इसके दर्शन करके यात्री बड़ा आनंद मानता है। यही कहता रहता है, धन्य हो पूज्य आर्यिकारत्न ज्ञानमती माताजी को। आज सर्वत्र कोई नाम गूंज रहा है, तो इन्हीं पूज्य ज्ञानमती माताजी का। पहले तो जम्बूद्वीप की रचना सीमित थी किताबों तक, लेकिन हस्तिनापुर में दर्शन होते हैं साक्षात् जम्बूद्वीप के।
जब मैंने प्रथम बार जम्बूद्वीप के दर्शन किये तो मुझे ऐसा लगा कि क्या मैं ये स्वप्न तो नहीं देख रहा हूँ या कहीं मुझे मनुष्य पर्याय से देवगति तो नहीं मिल गयी है। काफी देर बाद महसूस हुआ। अरे बड़ा आश्चर्य है, धन्य हो आर्यिका ज्ञानमती माताजी को।
यदि हुण्डावसर्पिणी काल में इस पृथ्वी पर कहीं कोई चीज देखने लायक है तो यही जम्बूद्वीप। मैं तो यहाँ तक विश्वास रखता हूँ कि जैन इतिहास में नहीं, बल्कि विश्व भर में इस जम्बूद्वीप का नाम होगा, आगे आने वाले इतिहास में जब तक सूर्य-चन्द्रमा रहेंगे, इसी जम्बूद्वीप का तथा आर्यिका ज्ञानमती माताजी का नाम गूंजेगा।
मैं पूज्य माताजी के चरणों में नमोस्तु करता हूँ और यह भावना भाता हूँ कि माताजा दीर्घायु हों।
साध्वी हो तो ऐसी
-पं० मिलापचंद शास्त्री, जयपुर
पूज्य सिद्धान्त वाचस्पति गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं। आप प्रकाण्ड विदुषी हैं। आपका व्यक्तित्व एवं कृतित्व बेजोड़ है। ज्ञानार्जन, साहित्य-सृजन एवं धर्म प्रचार आपके जीवन का प्रमुख आधार है। आप आगम मर्मज्ञा, प्रखर व्याख्यात्री, मृदुभाषी सरलता एवं सादगी की प्रतिमूर्ति हैं। कहना सो करना और करना सो कहना आपके जीवन का ज्योतिबिंदु है। आपने अपने कार्यकलापों से सिद्ध कर दिया है "क्या कर नहीं सकती महिला जिसको अबला कहकर तिरस्कृत किया जाता है।
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