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________________ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ [१०५ अनुयोगों की सुविशद् चर्चा करके ज्ञानमतीजी सजीव सरस्वती हैं। उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर उनका समाज जितना गौरव करे, कम ही है। पूज्य ज्ञानमतीजी की कीर्ति-कथा पूर्णिमा की चन्द्रिका-सी समग्र भारत संघ को दीर्घ काल तक सुखदायिनी वरदायिनी बनी रहे। अपने रत्नत्रय धर्म की आराधना करती हुई वे समग्र समाज को सम्यग्दर्शन-मार्ग-दर्शन देती रहें, यही मेरी मनोभावना-शुभकामना है। साधनारत आदर्श आर्यिकारत्न - पं० सत्यंधर कुमार सेठी, उज्जैन वर्तमान जगत् के महान् दिगम्बर जैन संतों में जम्बूद्वीप रचना की प्रेरणास्रोत परम श्रद्धेया पूज्य १०५ श्री ज्ञानमती माताजी का उल्लेखनीय स्थान है। मैं उनको एक आदर्श साधनारत आर्यिकारत्न के रूप में मानता आया हूँ। ___ पूज्य माताजी का जीवन एक आदर्श और साधनारत जीवन है। इस अल्प जीवन में माताजी द्वारा साहित्य रचना, जम्बूद्वीप स्थापना, शोध संस्थान जैसी संस्थाओं को जन्म देकर जो कीर्ति प्रसारित की गयी है वह सदियों तक स्मरणीय रहेगी। जम्बूद्वीप रचना तो एक स्मरणीय तीर्थ ही बन गया है। जहाँ जाने पर मानव को शांति का अनुभव होता है। मुझे पूज्य माताजी के दर्शन करने का कई बार सौभाग्य मिला है, जब भी मैं चरणों में गया तब ही मैंने उनको एकांत स्थल में अध्ययन करते ही देखा। वास्तव में ज्ञान, ध्यान, तप ही उनका जीवन है। उसी का यह परिणाम है कि अष्टसहस्री जैसे महान् ग्रंथों की हिन्दी भाषा में रचना करके विद्यार्थी जगत् को पढ़ने के लिए सुगम बना दिया है। उनका एक ही लक्ष्य रहा है, माँ जिनवाणी माता का प्रचार और प्रसार करना। विद्वानों के प्रति भी उनकी भावनाएँ सदैव उदार रही हैं। इसीलिए उन्होंने कई बार गोष्ठियों का आयोजन करवाया है। साथ में राष्ट्रीय एकता, साम्प्रदायिक सद्भाव तथा मानवीय भावनाओं को प्रसारित करने में भी उनका अनुपम सक्रिय योगदान रहा है, ऐसी महान् आर्यिकारत्न के चरणों में श्रद्धा प्रकट करता हुआ मैं अपने आपको धन्य मानता हूँ और भावना भाता हूँ कि श्रद्धेय माताजी दीर्घ जीवन प्राप्त करती हुई माँ सरस्वती की सेवा करती हुई आदर्श जीवन को प्राप्त करें। "सही अर्थों में ज्ञानमती हो तुम !" -पं० सुलतान सिंह जैन, शामली ज्ञानमती के कृतित्व :- पू० माताजी प्रारंभ से ही प्रखर बुद्धिमान् हैं। फलतः इन्होंने अपने ज्ञान-ध्यान का सदुपयोग कर ऐसे-ऐसे अविस्मरणीय कार्य कर दिखाये हैं, जिनसे युगों-युगों तक इनका नाम अमर रहेगा। (क) साहित्य-सृजन :- आर्यिका ज्ञानमतीजी ने अपनी प्रखर बुद्धि एवं प्रतिभा द्वारा कठिन से कठिन तथा सरल से सरल करीब १५० ग्रन्थों की रचना कर प्रकाशित कराये हैं, जिनमें प्रमुख हैं- समयसार, नियमसार, अष्टसहस्री, सर्वतोभद्र महामण्डल विधान, तीनलोक विधान, त्रैलोक्य विधान, तीसचौबीसी तथा पंचमेरु विधान, बाल विकास चार भागों में आदि। (ख) निर्माण कार्य :- करणानुयोग के तिलोयपण्णत्ति एवं त्रिलोकसार में वर्णित जम्बूद्वीप-रचना को पृथ्वीतल पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मूर्तरूप देकर (निर्माण कराकर) आपने जो चिरस्मरणीय कार्य किया है, उसकी कोई सपने में भी तुलना नहीं कर सकता था। वस्तुतः इसी महान् कार्य के कारण आज हस्तिनापुर क्षेत्र का जहाँ विकास हुआ है, वहीं वह भारत का प्रमुख पर्यटन-स्थल भी बन गया है। सहस्रों तीर्थयात्री यहाँ के कायापलट दृश्यों को देखकर दाँतों तले उँगली दबाते हैं। (ग) जम्बूद्वीप ज्ञानज्योति रथ का प्रवर्तन :-४ जून, १९८२ को भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने जम्बूद्वीप ज्ञानज्योति रथ का लालकिला, दिल्ली के मैदान से प्रवर्तन आरंभ किया था, जिसने भारत के कोने-कोने में घूमकर प्राचीन जैन-साहित्य एवं भगवान् महावीर के सिद्धान्तों का प्रचार-प्रसार किया। इसका समापन समारोह दिगंबर जैन त्रिलोक शोध संस्थान हस्तिनापुर के प्रांगण में तत्कालीन रक्षामंत्री श्री पी०वी० नरसिंहराव (वर्तमान प्रधानमंत्री) द्वारा किया गया। Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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