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________________ १०६ ] वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला (घ) सेमिनारों तथा शिविरों का आयोजन :- पू० माता ज्ञानमतीजी के अथक प्रयास एवं अद्भुत क्षमता से दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान में विभिन्न विषयों से संबंधित समय-समय पर प्रादेशिक, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनारों तथा शिविरों के अनेक आयोजन किये जाते रहे हैं। जिनमें विश्व के अनेकानेक विद्वानों, सिद्धांतशास्त्रियों, गणितज्ञों, शिक्षार्थियों आदि ने सम्मिलित होकर अपने-अपने गहन एवं उत्कृष्ट विचारों से आम जनता को लाभान्वित किया है। (ङ) भक्ति, संगीत का प्रमुख स्त्रोत :- गणिनी आर्यिकारत्न ज्ञानमती माताजी ने भक्ति एवं संगीत के सामंजस्य का जो रिकार्ड स्थापित किया है, वह पूर्णतः उत्कृष्ट है। अब से १६ वर्ष पूर्व भारत में यत्र-तत्र केवल सिद्धचक्र विधान का अनुष्ठान कर इतिश्री हो जाती थी, किन्तु माताजी द्वारा इन्द्रध्वज विधान, कल्पद्रुम विधान, सर्वतोभद्र महामण्डल विधान, तीनलोक विधान, त्रैलोक्य विधान आदि विधानों की रचना करने से भारत में सर्वत्र इन्द्रध्वज एवं कल्पद्रुम आदि विधानों की दुन्दुभी बज रही है । भक्तजन जिसे सुनकर भक्तिभावों में लवलीन होकर झूम उठते हैं । वस्तुतः धर्म का गूढ़ से गूढ़ रहस्य इन विधानों की जयमालाओं में भरा पड़ा है। आर्यिकारत्न ज्ञानमती माताजी की उपर्युक्त अपार, अमिट, अपूर्व सेवाओं से सम्पूर्ण समाज प्रेरित है। यह कहना उपयुक्त होगा कि "मधु भाषिनी सुवासिनी हो तुम, ज्ञान की तीव्र मन्दाकिनी हो तुम । नव-ज्ञान सृजन कारिणी हो तुम, अज्ञानी को ज्ञान प्रदायिनी हो तुम ॥ १ ॥ धर्म ज्ञान प्रचारिनी हो तुम, विश्व-हित-मित बखानती हो तुम । सूर सम आभा प्रसारती हो तुम, सही अर्थों में ज्ञानमती हो तुम ॥ २ ॥ Jain Educationa International ज्ञान की अमर मूर्ति : आर्यिकारत्न ज्ञानमतीजी ज्ञान की अमर ज्योति आर्यिकारत्न गणिनी पूज्य ज्ञानमती माताजी को कौन नहीं जानता? जो एक बार हस्तिनापुर हो आया उसे माताजी के दर्शन हुए या न हो पाये हों, लेकिन उनकी अमरकृति जम्बूद्वीप के उच्चतम शिखर को देखकर उनके सारे जीवन को पढ़ लेगा कि कितना अगाध ज्ञान एवं जैन भूगोल व प्राचीन जैन इतिहास का ज्ञान स्मरण इनके स्मृति पटल पर अंकित है। इसे केवल संगमरमर पत्थर का स्तंभ मत मानिये, बल्कि जैन सैद्धांतिक भूगोल का यह नक्शा हमें सम्पूर्ण अकृत्रिम चैत्यालयों की वंदना उनकी व्यवस्था आदि का परिचय करा देता है। यह सचमुच एक अनोखा और अद्भुत कार्य माताजी के सम्पूर्ण जीवन को आलोकित एवं अमर बना चुका है। मैंने माताजी के पहली बार ही दर्शन किये थे। हस्तिनापुर में देखते ही बोली कहिये पं० कमलकुमारजी कब आये ? एक ही बार में अपनी ओर आकर्षित कर आत्मीयता और वात्सल्य का भाव बरवश हमें खींच रहा था। आपने अनेकों प्रन्थों की टीका की, हिन्दी अनुवाद किये अनेक मौलिक रचनाएँ भी कीं इन्द्रध्वज विधान, जम्बूद्वीप विधान, कल्पद्रुम विधान, त्रैलोक्य तिलक विधान आदि प्रमुख है इतनी सरलता भर दी है उनमें, इसके साथ ही विधानों की विधि भी उनमें अंकित है। 1 आज सारे भारत में आपके रचे विधानों की धूम मची है कोई भी विद्वान् इन विधानों को पढ़कर करा लेता है। - पं० कमल कुमार शास्त्री, टीकमगढ़ - अष्टसहस्त्री नियमसार आदि ग्रन्थों की टीका की । सारा जीवन साहित्य सृजन, ज्ञानाराधन में बीत रहा है। आप अनेक संस्थाओं की जनक । हैं जैसे त्रिलोक शोध संस्थान, विद्यालय, वौरज्ञानोदय ग्रन्थमाला आदि संस्थाएँ संचालित हैं। इनके गुणों की महिमा कहाँ तक गाई जाये। मैं पूज्य माताजी के चरणों में अपनी विनयांजलि समर्पित कर मंगलमय जीवन की, दीर्घायु के लिए मंगलकामना करता हूँ । For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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