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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
विविध कार्यकलापों से मुझे ज्ञात हुआ कि संस्थान की प्रबंध समिति यहाँ एक संस्कृत महाविद्यालय स्थापित करना चाहती है ।
आगरा लौटकर मुझे विदित हुआ कि प्रस्तावित "श्री वीरसागर संस्कृत विद्यापीठ" के संयोजन तथा प्राचार्य का भार मुझ पर ही रखा गया है आश्चर्य हुआ कि इस गुरुतर भार को मैं अपने निर्बल कंधों पर कैसे वहन कर सकूँगा।
श्री वीरसागर विद्यापीठ की स्थापना
१० जुलाई १९७९ के शुभ मुहूर्त में मैंने उक्त विद्यापीठ का कार्यभार प० पूज्य आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी के आशीर्वाद के साथ ग्रहण
किया था।
स्वराज्य प्राप्ति के पश्चात् शिक्षा के क्षेत्र में भी क्रान्ति हुई। नगर नगर और ग्राम ग्राम में विविध भाँति को शिक्षा के द्वार खुले। साहित्य, कला, विज्ञान और व्यवसाय के विविध क्षेत्रों में प्रगति पथ का विकास हुआ। संस्कृत विद्यापीठ ने भी विकास में अपना योगदान किया। समय के अनुसार लोक शिक्षा की संस्थाओं का भी सहयोग प्राप्त किया, प्रवेशिका, विशारद, शास्त्री एवं आचार्य कक्षाओं तक सभी परीक्षा भक्तों द्वारा विशेषता के साथ उत्तीर्ण की गईं। सामान्य शिक्षा के अतिरिक्त-भक्ति, लोक सेवा, काव्य रचना, युक्ति एवं मुक्ति के क्षेत्र में भी ख्याति प्राप्त की । सन् १९८५ से तो भारतवर्ष में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा, सिद्धचक्र विधान, त्रैलोक्य मंडल विधान, कल्पद्रुम विधान आदि द्वारा भक्ति एवं अहिंसात्मक आंदोलन की समाज में विशेष जागृति आई सन् १९८५ के पश्चात् जंबूद्वीप रचना का कार्यक्रम सम्पन्न करके आर्यिकारत्न माताजी ने सम्पूर्ण विद्यापीठ को शिक्षा क्षेत्र में परिवर्तित कर दिया है। पौराणिक क्षेत्र हस्तिनापुर प्राचीनकाल के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा-दीक्षा में भी प्रगति पथ पर अग्रसर है। यह निर्दोष कृतित्व एवं व्यक्तित्व विश्व का नयनपथगामी हो, यही मेरी भी हार्दिक कामना है।
ऐतिहासिक विभूति
• पं० कोमलचन्द्र जैन शास्त्री, लोहारिया
यथा नाम तथा गुणों से युक्त पूज्य श्री आर्थिकारण शनमती माताजी ने अपने जीवन के अल्पकाल में जो चिरस्मरणीय कार्य किया है वह दिगम्बर जैन धर्म का ऐतिहासिक प्रतीक रहेगा। जम्बूद्वीप रचना तथा साहित्य का सार समयानुकूल संकलित, संवर्द्धित, अनुवादित तथा स्व-रचित कृतियों से भव्यजीवों को जो ज्ञानज्योति दी है वह ऐतिहासिक है। उनकी त्याग, तपस्या आगमरक्षक भावना जनसाधारण से भी छिपी नहीं है। आपकी शैली स्पष्ट, सरल, मृदु तथा व्युत्पत्तिपरक होने से विद्वत्गणों के लिए भी अनुकरणीय है। कातंत्र व्याकरण की पाठन शैली पंचमपट्टाधीश आचार्य श्री श्रेयांससागरजी महाराज की हमने देखी है, जिसका हिन्दी अनुवाद कर माताजी ने व्याकरण क्षेत्र में शिष्यों को दिशा बोध प्रदान किया है। अस्तु, पूज्य माताजी एकान्तवासी होने पर भी इनकी वाणी चहुँओर गाँव-गाँव तक पहुँचती है मेरी हार्दिक भावना है कि ज्ञानमती का ज्ञानप्रकाश अक्षुण्ण रहे, इन्हीं मंगल भावनाओं से विनयांजलि प्रस्तुत है ।
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सजीव सरस्वती
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स्व० लक्ष्मीचन्द्र "सरोज" एम०ए०, जावरा [म०प्र० ]
आर्यिकारत्न ज्ञानमती माताजी के मेरी दृष्टि में एक से अधिक रूप हैं। वे लेखिका, कवयित्री, पूजाकार, दीपिकाकार, कहानीकार, बाल-लेखिका हैं। ब्रह्मचारिणी, क्षुल्लिका, आर्यिका से गणिनी बन चुकी है। सम्यग्ववान मासिक में लगभग अट्ठारह वर्षों से चारों अनुरोगों को विशद चर्चा कर, नियमित दिनचर्या, पठन-पाठन, मनन-चिन्तन, सृजनात्मक साहित्य, अथक अध्यवसाय ने उन्हें आशातीत असाधारण बना दिया। त्रिलोक शोध संस्थान की वे मूलभूत चेतना है और सुदर्शन मेरु, महावीर कमल मन्दिर, ह्रीं मन्दिर को जन्म-जीवन दे वास्तुकलाविद बनीं अतीत के हस्तिनापुर की कीर्ति कथा को उन्होंने आधुनिक कीर्ति-कथा से जोड़ दिया है।
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बीसवीं शताब्दी की दो महिलाओं की प्रतिभा और साहित्य से मैं बड़ा प्रभावित हुआ एक महादेवी वर्मा थीं दूसरी ज्ञानमती माताजी हैं। महादेवी और ज्ञानमती दोनों ने ही अपनी संज्ञा सार्थक की एक साहित्यिक दार्शनिक, चित्रकार हैं तो दूसरी धार्मिक दार्शनिक पौराणिक हैं। चारों
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