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________________ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ "माँ ज्ञानमती को भुलाया नहीं जा सकता" -पं० पवन कुमान जैन "चक्रेश" शाहगढ़, सागर [म०प्र०] ज्ञाता आगम ज्ञान की , नहीं रंच भी मोह । ममता तज समता धरी, तीनों रतन सनेह ॥ आचार्य श्री शान्तिसागरजी महाराज द्वारा स्थापित वर्तमान योगी साम्राज्य में ब्राह्मी आर्या की उपमा से सुशोभित एवं आचार्य श्री वीरसागरजी की प्रथम बाल ब्रह्मचारिणी शिष्या आर्यिका ज्ञानमती माताजी के सद्प्रयासों की कितने युगों तक प्रंशसा होगी। यदि ऐसी चर्चा की जाये तो उत्तर यही होगा कि जब तक इस पृथ्वी पर अहिंसा धर्म का डंका बजाने वाले भगवान महावीर के लघुनन्दन विद्यमान रहेंगे तब तक माँ ज्ञानमतीजी को भुलाया नहीं जा सकता। जिस प्रकार हजारों वर्ष पहले निर्मित भगवान बाहुबली की मूर्ति को देखकर सिद्धान्त चक्रवर्ती श्री नेमिचन्द्र स्वामी, चामुण्डराय तथा उनकी माता की सहसा ही याद हो आती है, उसी प्रकार उत्तर प्रान्त हस्तिनापुर स्थित जम्बूद्वीप को देखकर आर्यिका श्री ज्ञानमतीजी, श्री चन्दनामतीजी, पीठाधीश स्वस्ति श्री मोतीसागरजी, ब्र० श्री रवीन्द्र भाई आदि को एवं उनके अथक प्रयासों को भुलाया नहीं जा सकता। सिद्धान्तसागर वेत्ता- आर्यिका श्री ने जीवन भर श्रुताभ्यास कर अनेक कठिन-कठिन ग्रन्थों की सरल हिन्दी, संस्कृत टीकाएँ कर सरल बना दिया एवं स्वयं शताधिक ग्रंथों की रचना कर भूले-भटके भव्य जीवों को सम्यग्ज्ञान करा शिवपथ पर लगा दिया। पं० श्री पन्नालालजी साहित्याचार्य-सागर के शब्दों में, जो कि वयोवृद्ध साहित्य-सृजक हैं "इन आर्यिका माताओं की लेखनी में कितनी मृदुता है कि कठिन-कठिन ग्रन्थों की सरल हिन्दी टीकाएँ कर जन साधारण के लिए गम्य कर दिया।"। नये युग की कामना-पू० माताजी का सद्प्रयास यही रहता है कि भविष्य में देव-शास्त्र गुरु का संरक्षण हो, पापाचार का नाश हो, भव्य जीव षडायतनों का आश्रय पाकर मिथ्यात्व रूपी मल को सम्यक्दर्शन नीर से धोकर सम्यग्ज्ञानामृत का पान कर चारित्र पथ को दृढ़ रखें। मेरी यही अभिलाषा- मैं यही भावना भाता हूँ कि पंचमकाल के अन्त तक ऐसी ज्ञानमती आर्यिका का अविरल सद्भाव रहे, ताकि अहिंसा चिह्न से चिह्नित वीर-पताका यगों-युगों तक निर्बाध रूप से आर्य खण्ड में फहराती रहे। चारों अनुयोगों को जानने वाली माता -पं० महेन्द्र कुमार जैन, उदयपुर [राज०] सम्यक् पावन भूमि, श्री तीर्थंकर चक्रवर्तियों के पावन स्थल हस्तिनापुर में अपूर्व महान् वैभव विभूति सम्यक्त्व से ओत-प्रोत होती हुई सम्यक् ज्ञानज्योति जलाकर अनोखा स्थल जंबूद्वीप की रचना बनवाकर ज्ञानमती माताजी ने महान् गौरव का कार्य किया है, उससे भारतीय भव्य जीवों का महान् सौभाग्य जागा है। पुस्तकों, ग्रंथों में जम्बूद्वीप का नाम पढ़ा, लिखा जाता था, मगर चिरस्मरणीय आर्यिका श्री ज्ञानमतीजी ने जम्बूद्वीप की रचना करवाकर उसके अन्दर ज्ञानानुभूति का दीप जलाकर, मार्ग-दर्शन देकर भव्य जीवों को सम्यक् पथ बतलाया। पू० आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी चारों अनुयोगों को लेखनीबद्ध करने में परम विदुषी हैं। सारे भारत में यह श्री जिनेन्द्र प्रभु की एक अपूर्व सरस्वती कन्या हैं। यह चिर स्मरणीय कला की प्रतीक माताश्री वीतराग मार्ग-शोधन में तल्लीन रहते हुए सदा के लिए स्वाधीन बनें। Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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