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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
शत-शत वन्दन
- पं० केशरीमल जैन, बी०ए० विशारद, गंज बासौदा [म०प्र० ]
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बीसवीं शताब्दी में ही नहीं, अपितु प्राप्त शोध खोज के अनुसार भी पूज्या गणिनी आर्यिकारत्न श्री १०५ शनमती माताजी के समान दूसरी नारी रत्न इस धरा पर अवतरित नहीं हुई हैं, जिन्होंने धार्मिक, साहित्य, निर्माण आदि क्षेत्रों में इतनी प्रसिद्धि पाई हो ।
पूज्य माताजी द्वारा लिखित साहित्य अपने आप में विशाल व अनूठा है, जो आपकी विद्वत्ता का अनुपम भंडार है। जम्बूद्वीप निर्माण की प्रेरणा देकर शास्त्रों के अनुसार वर्णन को रचनात्मक रूप दिलाकर जम्बूद्वीप की अनुपम रचना विश्व के वैज्ञानिकों की खोज का केन्द्र हो रही है। जिसकी प्रतिकृति "ज्ञानज्योति रथ" तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व० इन्दिरा गांधी द्वारा भारत की राजधानी दिल्ली से प्रवर्तित की गयी तथा देशभर में धार्मिक जागृति करते हुए पूज्य माताजी की महानता का सूचक रही।
हर प्रकार से धार्मिक प्रचार-प्रसार करने वाली महान् आर्यिका माताजी का अभिवंदन, शत शत वंदामि ।
बीसवीं शताब्दी की प्रथम बालब्रह्मचारिणी
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पूज्य माताजी के बारे में कुछ भी लिखना सूरज दो दीपक दिखाना है। आप इस बीसवीं शताब्दी की प्रथम बाल ब्रह्मचारिणी गणिनी आर्यिका हैं। आपने अपने नाम की गरिमा को कायम रखा, जिसके लिए आपने अपने क्षुल्लिका काल से ही व्याकरण व उसके साये में १९६५ तक गहन अध्ययन कर साहित्य सृजन की ओर अपना पग बढ़ाया। आपके १३५ ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं, शेष भी जल्दी ही प्रकाशित होंगे ऐसा विश्वास है।
- पं० सुलतानसिंह जैन, बुलंदशहर
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करणानुयोग का गहन अध्ययन कर हस्तिनापुर में जम्बूद्वीप की रचना की है। जो अति मनोज्ञ है। हस्तिनापुर से आपकी प्रेरणा से "सम्यग्ज्ञान" पत्रिका प्रकाशित होती है, जिसमें चारों अनुयोगों सम्बन्धी समुचित सामग्री प्रकाशित होती है। बालकों के लिए धर्म में आस्था दृढ़ करने वाली सामग्री होती है। इस प्रकार यह पत्रिका बड़ी लाभप्रद है ।
आचार्य श्री वीरसागरजी की स्मृति में आपने एक संस्कृत विद्यापीठ भी स्थापित किया है, जहाँ से शास्त्री व आचार्य की उपाधि प्राप्त कर समाज को विद्वान् उपलब्ध होते हैं, जो धर्म का प्रचार करते हैं।
मैं ऐसी विदुषी माता श्री के चरणों में अपनी विनयांजलि अर्पित कर आशा करता हूँ कि समाज का मार्ग-दर्शन करती रहे और हमें धर्माद होने की प्रेरणा देती रहे।
कोटि-कोटि नमन्
डॉ० सोहनलाल देवोत लोहारिया, बाँसवाड़ा [राज० ]
यह परम प्रसन्नता का विषय है कि त्रिलोक शोध संस्थान हस्तिनापुर जैन जगत् की परम विदुषी गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी के अभिनंदन हेतु अभिनंदन ग्रंथ प्रकाशित करने जा रहा है। पूज्य माताजी ने अपना सम्पूर्ण जीवन निरतिचारपूर्वक आर्यिका व्रतों का परिपालन करते हुए, ज्ञानाराधनस्वरूप शताधिक महत् ग्रन्थों की रचना कर, त्रिलोक सम्बन्धी प्रत्यय को त्रिलोक शोध संस्थान के मूर्तरूप द्वारा स्पष्ट कर, प्रत्येक जिज्ञासु अन्वेषक की जिज्ञासा को शांत करने का प्रबल पुरुषार्थ किया है, यह अपने आप में ऐतिहासिक घटना है, जिसे जैन साहित्य के इतिहास में ही नहीं, अपितु विश्व इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित किया जायेगा।
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पूज्य माताजी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का अभिनंदन ग्रंथ के माध्यम से पूर्ण सफलता की कामना के साथ उनके पावन चरणों में कोटि-कोटि करते हुए उनके शतायु होने की मंगलकामना करता है।
नमन्
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