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________________ आ दर्श य ती न्द्र कुन्दनमल डांगी “प्र. सं. शाश्वतधर्म" जैन संस्कृति व्यक्ति-पूजा में नहीं, वरन् गुण-पूजा में विश्वास लेकर चली है। सद्गुणों का आराधक तथा दिव्यगणों का साधक ही यहाँ पूजनीय एवं श्रद्धेय होता है। सद्गुण ही जन-मन में अपना विशेष स्थान बनाता है। प्रातः स्मरणीय परमपूज्य गुरुदेव श्रीमद्विजययतीन्द्रसूरीश्वरजी महाराज वर्तमान जैनाचार्यों में एक सद्गुणों की साकार मूर्ति है। आप का तेजस्वी चहरा, भव्यभाल, मधुर वाणी, अखण्डब्रह्मचर्य, शुद्ध चारित्र अलौकिक एवं चित्ताकर्षक हैं। आप सदैव तत्वचिन्तन, साहित्यसेवा, शास्त्रावलोकन में ही अपना समय निर्गमन करते हैं । गुरुदेव के अनेकानेक सद्गुणों से प्रेरित होकर ही मैं भूला-भटका पथिक प्रतिकूल मार्ग से अनुकूल मार्ग पर आसका; अतः उन परमोपकारी गुरुदेव के दीक्षापर्याय के ६० वर्ष पुरक हीरक-जयन्ती उत्सव के शुभावसार पर उनके अलौकिक गणों का आलेख आंग्ल एवं उर्दू भाषा के इस लुघु कविता में भनेकानेक शुभाकांक्षाओं के साथ कोटिशः वन्दन सहित समर्पण करता हूँ। . परम पवित्र गुरु श्री यतीन्द्रसूरीश्वरजी महाराज His Holiness Guru Yateendrasoori Is holy worthy Gentle - man His birth place is Dhaulpur In Agra district town One; पाकीजा' दिल गुरु यतींद्र सूरि .है पण्डित आलिम' और कामिल । है जन्म धवलपुर कस्बे का, . जो आगरा दिल्ले में शामिल ॥ He has a mild and gentle heart, And follows rules of his master, He shows mercy on all alive, And many good works he has done, दिल जिसका पाक और साफ खरा, फर्माबरदार' है गुरुदेव के । १) पाकीज = पवित्र, २) आलिम = विद्वान्, ३) कामिल= पूर्णगुरु, ४) फरमाबदार = आज्ञाकारी, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012074
Book TitleYatindrasuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
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