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खण्ड
आचार्य श्री की साहित्य साधना
(१) श्री यतीन्द्र विहार दिग्दर्शन १-२-३-४ भाग, (२) मेरी गोड़वाड़ यात्रा, (३) कोरटाजी का इतिहास, (४) मेरी नेमाड़ यात्रा ।।
इन पुस्तकों में शिलालेखों, ताम्रपत्रों, प्रतिमा लेखों, व पट्टे-परवानों का परिचय होने से इनका महत्त्व पुरातत्त्व दृष्टि से बहुत बढ गया है ।
(३) व्याख्यान-साहित्य माला :- श्री यतीन्द्रसूरिजी का स्थान व्याख्यानकला की दृष्टि से जैनाचार्यों में बहुत ऊंचा है । हाजिर-जवाबी में तो आप जैन-समाज में सर्व प्रथम है । आपका भाषण सरल व मुहावरेदार भाषा में होता है । धार्मिक कहानियों से आगम-निगम के कठिन प्रश्नों को जोड देने से आपके व्याख्यान और भी निखर जाते हैं । आपके व्याख्यानों की बहुत सी किताबें मुद्रित हो गई हैं और उनमें निम्न बहुत प्रसिद्ध हैं -
(१) भाषण सुधा (७ व्याख्यानों का संग्रह), (२) श्री यतीन्द्र प्रवचन [हिन्दी] प्रथम भाग, (३) समाधान-प्रदीप, (४) सत्यसमर्थन प्रश्नोतरी, (५) मानवजीवन का उत्थान आदि
(४) धार्मिक व आलोचनात्मक साहित्य :- यतीन्द्रसूरिजी ने अनेक धार्मिक किताबें लिखीं। उन किताबों को हम ३ भागों में बांट सकते हैं - (१) महान् पुरुषों के जीवन-चरित्र (२) धार्मिक आलोचनात्मक लेख (३) स्तवन व पूजा संग्रह। पहली श्रेणि में निम्न किताबें बहुत प्रसिद्ध हैं
(१) जीवन-प्रभा, (२) अघटकुमार, रत्नसार, हरीबलधीवर चरित्र, (३) जगडूशाह चरित्र (गद्य), (४) कयवन्ना चरित्र (गद्य), (५) चम्पकमाला चरित्र [गद्य ], (६) राजेन्द्रसूरीश्वर जीवन-चरित्र, (७) सत्पुरुषों के लक्षण, (८) मोहनंजीवनादर्श
दूसरी श्रेणि (धार्मिक आलोचनात्मक) में निम्न पुस्तकें बहुत प्रसिद्ध हैं -
[१] तीन स्तुति की प्राचीनता, [२] भावना स्वरुप, [३] सूक्तिरस लता, [४] लघु चाणक्यनीति, [५] पीतपटाग्रह मीमांसा, [६] जीवभेद-निरुपण अने गौतमकुलक (७) प्रकरण चतुष्टय, (८) स्त्री-शिक्षा प्रदर्शन, (९) गुणानुरागकुलक, (१०) तपःपरिमल
आचार्य महाराज की सेवा को केवल इसी दृष्टि से नहीं आंका जा सकता है कि उन्होंने अनेक पुस्तकें लिखीं, वरन् उन्होंने साहित्य लिखने में बहुत से तरुणों को प्रोत्साहन दिया । आचार्य महाराज इस कलिकाल में उन साधुओं में से हैं जिन्होंने समाज के उत्थान के लिये साहित्य के महत्त्व को समझा। यही कारण है कि अपने गुरु के स्वर्गवास के बाद उन्होंने 'राजेन्द्र अभिधान कोष' को सम्पादन कर, उसे प्रकाशित कराने का बीड़ा उठाया । निसन्देहः प्रकाशन की वह घड़ी जैन समाज के
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