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श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ
जीवन
आपके इतिहासप्रेम को प्रदर्शित करते हैं जो आगे जाकर ' श्री प्राग्वाट - इतिहास' की रचना करवाने में मूर्तिवंत प्रगट हुआ है । आपने मूर्तिलेख और शिलालेखों का भी पर्याप्त संग्रह किया है जो इन ग्रंथों में यथास्थान सप्रसंग आये हैं और 'श्री जैन-प्रतिमा-लेख संग्रह' नाम से आपद्वारा संग्रहित लेखों का एक स्वतंत्र ग्रंथ प्रकाशित हुआ है। __अंजनशलाका प्रतिष्ठायें -वि. सं. २०१३ पर्यंत आपश्री के कर कमलों से लगभग ५० प्रतिष्ठा-अंजनशलाकायें सम्पन्न हुई हैं। जिनमें श्री लक्ष्मणीतीर्थ, हरजी, आहोर, बागरा, सियाणा, थराद, धाणसा, भाण्डवपुरतीर्थ और बाली में हुई अति प्रसिद्ध और प्रभावक रही हैं । आपने सैकड़ों प्राचीन बिम्बों को स्थापित करवाये और सहस्रों नवीन बिम्बों की प्रतिष्ठा की! सियाणा, धाणसा, भाण्डवपुर की प्रतिष्ठाओं की स्वतंत्र पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं और बागरा की प्रतिष्ठा का सविस्तार वर्णन 'श्री गुरुचरित' में उल्लिखित है। वैसे तो आहोर, थराद, बाली आदि समस्त प्रतिष्ठाओं का यथाप्राप्त वर्णन 'गुरुचरित' में दिया जाने का पूरा-पूरा प्रयत्न किया गया है ।
_ 'गुरुचरित' आपका जीवन-वृतान्त है जो इस लेख के लेखक ने लिखकर वि. सं. २०११ में प्रकाशित करवाया है।
तपाराधन-वि. सं. २०१४ पर्यंत आपश्री की तत्त्वावधानता में सियाणा, गुढ़ावालोतरा, पालीताणा, खाचरौद, बागरा, आकोली, राणापुर में उपधानतयों का आराधन हुआ। इन तपों में सैकड़ों श्रावक-श्राविकाओं ने भाग लेकर अपना कायाकल्प किया और तपों के महत्व की प्रभावना की । 'गुरुचरित' में इन तपों का यथाप्रसंग और यथाप्राप्त वर्णन दिया गया है।
ज्ञान-भण्डार-इस सम्प्रदाय के बागरा, सियाणा, भिन्नमाल, जालोर, आहोर, गुढ़ा, रतलाम, कुक्षी, खाचरौद, जावरा में समृद्ध एवं विशाल ज्ञान-भण्डार हैं। इन भाण्डारों में श्रीमद् राजेन्द्रसूरि, धनचन्द्रसूरि और भूपेन्द्रसूरि तथा आपश्री द्वारा रचित सम्पादित, संग्रहित साहित्य है। सर्व भण्डार स्थानीय संघों के द्वारा सुरक्षित हैं । स्वर्गीय तीनों आचार्यों के नाम से फिर कई स्वतंत्र साहित्य-समितियां मारवाड़, थराद और मालवा में साहित्य सेवायें कर रही हैं। आपश्री के दो शान-भण्डार हैं, जिनमें गुढ़ा का भण्डार अधिक समृद्ध और हर प्रकार के साहित्य से सम्पन्न है।
उल्लेखनीय तो यह है कि उपरोक्त सर्व भण्डारों पर आपकी एक सी देखरेख होने से सर्व ही प्राणमय और प्रकाशमान है। प्रकाशित पुस्तकों के विक्रय के लिये श्रीराजेन्द्र प्रवचन कार्यालय, खुडाला समस्त जैन जगत् में प्रसिद्ध है ।
तीर्थोद्धार-श्रीलक्ष्मणीतीर्थ, श्रीकोर्टाजीतीर्थ, श्रीस्वर्णगिरि जालोरतीर्थ, श्रीतालनपुर तीर्थ और श्री भाण्डवपुरतीर्थ नामक अति प्राचीन तीर्थों के जीर्णोद्धार में
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