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आचार्य श्री यतीन्द्रसूरिजी का इतिहास - प्रेम
श्री अगरचन्दजी नाहटा,
बीसवीं शताब्दी के जैनाचार्यों में श्री राजेन्द्र सूरिजी का प्रधान स्थान है । उन्होंने 'अभिधान राजेन्द्र कोष' जैसे महान् ग्रन्थ का निर्माण कर जैन साहित्य की बहुत बड़ी सेवा की है । और भी उनकी ज्ञानभक्ति बहुविध रही है। करीब ६१ ग्रन्थ उन्होंने स्वयं रचे और अनेकों स्थानों में हस्तलिखित प्रतियों और मुद्रित ग्रन्थों के ज्ञान- भण्डार स्थापित किये। सब से बड़ी बात तो यह है कि उन्होंने अपने शिष्य, प्रशिष्यों को भी योग्य विद्वान् वनाये जिससे उनका किया हुआ कार्य ही प्रकाश नहीं आया पर और भी बहुत सा साहित्य निर्माण होता रहा । यदि वे अपने शिष्यों को इतने योग्य नहीं बनाते तो उनका महान् ग्रन्थ 'अभिधान राजेन्द्र कोष' भी अप्रकाशित पड़ा रहता । उससे जो आज देश, विदेश में लाभ उठाया जा रहा है, नहीं मिल पाता ।
आचार्य यतीन्द्र सूरिजी उन्हीं के विद्वान् शिष्यों में एक हैं जिन्होंने अपने गुरु श्री के कार्य को बड़ी लगन के साथ आगे बढाया और निरन्तर ज्ञानसेवा व शासन प्रभावना कर रहे हैं । उनके अनेक ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं। मुझे तो इस लेख में उनके इतिहास - प्रेम के सम्बन्ध में ही कुछ प्रकाश डालना है । मुझे उनका सबसे पहले परिचय उनके 'यतीन्द्रविहार-दिग्दर्शन' पुस्तक के द्वारा ही हुआ । जो सं. १९८६ में प्रकाशित हुई । हमने साहित्य और इतिहास के अनुसन्धान का कार्य इसी समय के आसपास प्रारम्भ किया था । और जब यह पुस्तक मेरे देखने में आई तो मुझे बहुत उपयोगी प्रतीत हुई । वैसे तो प्रत्येक जैन मुनि अनेकों स्थानों व प्रदेशों में घूमते रहते हैं, लोगों के सम्पर्क में आते हैं, तीर्थों की यात्रा करते हैं, अनेकों महत्व की बातें सुनते व देखते हैं; पर उन सब बातों में जो दूसरों के उपयोगी जानने व पढने लायक होती हैं - उन्हें ग्रन्थरूप में लिखकर प्रकाशित करनेवाले मुनि बहुत थोड़े ही होते हैं । अतः उनकी जानकारी का लाभ दूसरा नहीं उठा पाते। कुछ मुनियों ने अपने विहार के सम्बन्ध में कुछ पुस्तकें प्रकाशित की हैं। पर वे एक तो वैसे विहारस्थलों की सूचियां विवरण होने से पठनीय नहीं बन पाई, बहुत रूखी हो गई हैं । केवल स्थानों के नाम, उनकी दूरी, स्टेशन, मन्दिर, उपाश्रय श्रावकों आदि के घरों की संख्या ही उनमें होने से उनका उपयोग बहुत सीमित ही हो सकता है । जब कि यतीन्द्रसूरिजी ने अपने विहार का वर्णन ' यतीन्द्र विहार दिग्दर्शन ' के ४ भाग और मेरी नेमाड़ यात्रा, गोड़वाड़ यात्रा आदि पुस्तकों में दिया है वह बहुत ही सजीव है । उसमें जहां-जहां वे गये उन स्थानों की आवश्यक जानकारी, पुराना
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