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________________ स्मरणीय ये तीन वर्ष वर्त्तमान विश्व बहुत ही संकटों से गुजर रहा है। प्रत्येक समाज अपने उत्कर्ष के लिये प्रयत्नशील है । तब मेरा समाज से यही कहना है कि वह भी अपनी उन्नति के लिये जो मार्ग हैं उनका शीघ्र अनुसरण करें और उसके लिये सब से पहिले आवश्यकता शिक्षा की है । अतः इसकी प्रथम व्यवस्था करना चाहिये। साथ ही विद्वानों का सम्मान भी आवश्यक है । अपने प्रवचन के दरम्यान गुरुदेव ने समाज को अन्य भी कई संकेत किये जो गुरुदेव के उपदेश से प्रकाशित होरहे " शाश्वत धर्म " मासिक में छप चुके हैं । अन्त में गुरुदेव ने समाज को इस आयोजन के लिये धन्यवाद दिया। श्री दौलतसिंह लोढा 'अरविंद ' गुरुदेव के परम भक्त हैं। उन्होंने भी इस ही अवसर पर गुरुदेवश्री को हस्तलिखित एक लघु ' वैराग्य - गीतिका' समर्पित की । पुस्तक खण्ड आपकी प्रेरणा से प्रेरित होकर अ. भा. राजेन्द्र सभा के उपाध्यक्ष डॉक्टर प्रेमसिंहजी राठोड ने एक योजना समाज के सन्मुख रखी कि गुरुदेव के दिक्षापर्याय के उपलक्ष में समाज का हरएक व्यक्ति ६१ ) रुपये राजेन्द्र साभा को दान दें। उस रकम को भी ' यतीन्द्रसूरि हीरक जयन्ती शिक्षा-फंड' के नाम से घोषित किया गया । इस बात को साकार रूप देने के लिए उपस्थित जनसमुदाय में करिबन ३५ समाज प्रेमियों ने उपर्युक्त रकम देने की अपनी हार्दिक इच्छा प्रकट की और आगे भी सहायता देने का वचन दिया । पश्चात् गुरुदेव श्री को पुष्पाञ्जलिरूप मुनिवरों और बहार से आये हुये एवं अत्रस्थ विद्वानों के प्रवचनरूप पुष्पांजलियां समर्पित की गई । ३१ अन्त में इस शुभावसर पर पूज्य परम कृपालु गुरुदेव के चरणारविन्द में शतशत वन्दना करता हुआ भक्ति के यह दो शब्द पुष्प सादर समर्पित कर अपने आप को धन्य मानता हूँ । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012074
Book TitleYatindrasuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
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