________________
विषय खंड
जैन गीतां री रसधारा
२८७
इण भावां रै जोड़ रा भाव अंगरेजी महाकवि सैली नै हिंदी रा महाकवि निरालाजी रै गीतां म्हें मिलै । फरक इतरोहीज है कि यै गीत आज सूं तीन सो वरस पहला लिख्या गया हैं । अण खातर तो फेर इणां रै भावां रो मान घणो चाहीजै ।।
अकलो राजुल रो विरह जैन गीत काव्य में इतणो विसाल रूप धर नै छा गयो है कि उण विरह रो मीठो मीठो दरद सारै गीतां म्हें समायो है। इस मिठास रा पद जैन काव्य में मोकळा मिलै । स्त्री सुलभ सुभाव सं राजुल रा मीठा बोल कितणा आछा लागै- बहिण सामलियउ सुहावइ रे, वीजउ कोई दाय न आवइ रे
आली री मिल रे ल्याजो नेमिकुमार नेमि राजुल री भांत ही स्थुलभदर - कोशा रा गीतां म्हें भी या ही रसधार है । समयसुंदर रै सबदा म्हें स्थूलभदर - कोशा रो एक गीत देखो
राति न तो नावे व्हाला नींदड़ी रे, दिवस न लागै भूख । अन्न नै पाणी मुझ नैं नावि रुचै रे, दिन दिन दुरबळ दूख ॥ मन ना मनोरथ साणि मन मा रह्यारे, कहियै केहनैरे साथ । कागळिया लिखतां तो भी आंसुआंरे, चढियो हो दुरजन नाथ ॥ नदियां तणा व्हाला रेळा वालहारे, ओछां तणां सनेह । बहता बहै वाल्हा उतावळा रे, झटकि दिखावै छेह ॥ सारसड़ी मोती चुगै रे, चुगै तो निगसै कांइ ।।
साचा सदगुरु जो आणि मिलै रे, मिले तो बिछडै काइ ॥ परेम नै विरह रे गीतां रै अलाषा शांतरस रा, वराग रा, भगती रा, ग्यान रा नै बीजे घणे उपदेस रा गीत भी इण गीतां भेला हैं । काया जीव सझाय, कामणी बिसवास, निवारण सझाय, खट सास्त्र संवाद, वैषम्य नै घृणा प्रसंग, स्थूलभद्र सझाय वगेरै पोथ्यां म्हे इण गीतां री भरमार है। संसार रै जलम-मरण रै खेल रो अरथ समझण री कवि री जिग्यासा 'करतार सझाय' म्हें देखों
"मन मान्या माणस जे मेलै, तो कि विछोड़ा पाडै रे"
"पुरुस रत्न घड़ि घड़ि किम भां जै" ने आतमा री परमातमां सू मिलण री अभिलाखा री झलक इण कड़ियां म्हें देखों
रूडा पंखीडा, पंखीडा मुन्है मैल्ही नेम जाय ।
धुर थी प्रीत करी मैं तोसू, तुझ बिण खिण न रहाय ॥ इण प्रकार इण गीतां म्हें जैन भगती रो आद सू अंत ताई सगलो आ गयो है। उण रो विस्तार सूं वरणण करण रवातर घणो समै नै घणी जयां चाहीजै । साहित्यपारखियां ने काव्यरसिकां ने जैन भगती गीतां रो अध्ययन वेगा सू वेगो करणो चाहीजै नै उणां री रसधारां तूं काव्य परेमियां नैं छका देणा चाहीजै ।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org