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श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ
विविध
चन्द्र कलंकी, समंदजल खारउ, सूरज ताप न सहूं। . जलदाता पण स्याम वदन घण, तउ हूं किम सहऊ । कोमल कंवल पण नाल कंटक नित, संख कुटिलता बहूं ।
-समय सुन्दर कहई अणंत तीर्थकर, तुम महं दोस न लहूं । वैसणव गीतां सूं न्यारी एक खास वात अणां भगतारै विरहरी तीवरता है। इण तीबरता नैं जैन कवियां घणे मीठे नै हिरदै छूतां सबदा म्हें दरसायी है । राजुल रो विरह इणा गीतां री मोटी धरोधर है । नेमिनाथजी रै विरह म्हें राजुल रो हटपरेम इण बोलां म्हें देखों :
उण तजी मोकं मैं न तजंगी करूंगी इकतार ।
ताकी चरणचेरी होय रहूंगी जाऊंगी गिरनार ॥ पुरुस पर अविसवास रो लांछन लगाणारो नारी रै हिरदै रो वो कटु सत्य राजुल रै मुख सूं भी निकलयो है जिकै रो जिकर अंगरेजी कवि सेक्सपियर आप रै अंक नाटक में करयो
___ “राजल नारी इम कहई पुरुष नउ नहीय विसास" राजुल रै विरह रा छन्द काव्य री मस्ती म्हें अणमणी विरहणो कह्यो
फागण आयो फूटरो फूली सब वणराय । पिउड़ो नंह मुझ मंदिरे खेलै मोरी बलाय वा तो परियतम री बाट घणे चाव सूं देखती होतीवलीवली जोऊं बाटड़ी लिख ऊ निसदिन लेख ।
सूती बैठी सोचऊं अऊं लेख अलेख ॥ पीवमिलण री आस म्हें जैन गीतां री विरहणी नै आखी परकरती उण री तरियां ही नजर आवै
" कोयलड़ी टहुका करै तुम्ह मिलना अभिलाख" आखर परियतम सूं मिलने विरहणी संजोगणी हुई
आज भलै दिन ऊगियो वधीय मनोरथ बेल । निजरे सयण निहालिया करिस्यां मनरथ केळ ॥ वीछड़िया वाल्हा तणे मिलवा रो मन कोडि । विकसै गात बलावली हुलसै होडां होड ॥ इस विध संजोग सुख सूं घणी रलियाइत हो परियतमा गायो
प्री थे मधुकर, म्हे मालती: थे मोती, म्हे लाल । प्री थे देवल, म्हे देवता; थे तरवर, म्हे छाल । प्री म्हे कंचन की मूंदड़ी; थे लाखीणा नग्ग । प्री थे चंदा, म्हे चांदणी; थे सायर, म्हे गंग ॥ प्री थे हंसा, म्हे हंसणी; प्री थे मंदिर, म्हे नींव । प्री म्हे पंकज, थे रवि जिसा; प्री म्हे काया, थे जीव ॥
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