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श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ
विविध
के सफल चित्रकार हैं। जहां वे करुणरस को अंकित करने में पटु हैं वहीं श्रृंगारवर्णन करने में भी कुशल है। किन्तु कवि का मन शांतरस की ओर अधिक आकृष्ट हुवा । इसका एक कारण भी है कि जैन मुनियों पर जैन दर्शन का प्रभाव पूर्णतया पड़ा। करुणरस का स्थायी भाव वैराग्य है। इसी वैराग्य की इस काव्य में प्रधानता है । विजयदेव सूरिजी स्थान - स्थान पर इस संसार की निस्सारता को बताते हैं और राजा एवं प्रजा के लिये मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करते हैं ।
मेघविजयजी की वर्णनशक्ति विलक्षण है। उनमें ग्रामीण सरलता एवं भद्दापन नहीं हैं। न ही वे अत्यधिक कृत्रिम कलात्मक रूप वाले हैं। उनमें मध्म मार्ग है।
पविजयजी प्रकृति के सूक्ष्म निरीक्षक थे। इनका प्रकृति - वर्णन अत्यन्त सुन्दर है। ये वर्णन परम अलंकृत रूप में प्रस्तुत किये गये हैं। कालिदास की भांति इन्होंने भी षड् ऋतुओं का वर्णन किया है। इनके वर्णन भी कालिदास की भांति सजीव एवं सुन्दर बन पड़े हैं । कालिदास ने ग्रीष्म से प्रारम्भ कर वसन्त ऋतु तक का वर्णन किया है तो हमारे आलोच्य कवि ने भी षड्-ऋतुओं का वर्णन किया है। कालिदास एवं मेघ विजयजी के ऋतु - वर्णन में इतना ही अंतर ह कि कालिदास ने षड् ऋतुओं का वर्णन अपनी प्रियतमा को संबोधन कर लिखा है जब की मेघविजयजी ने अपने गुरु की यात्रा के मध्य पड़नेवाली षड्ऋतुओं का वर्णन किया है। कालिदास ने ग्रीष्म की प्रचण्डता का वर्णन करते हुये ऋतुसंहार का प्रारम्भ किया । ग्रीष्म की प्रचण्डता का वणन अत्यंत सुन्दर है ।
विशुष्ककण्ठाहृतसीकराम्भसो गभमस्तिभिर्भानुमतोऽनुतापिता :
प्रवृद्धवृष्णोपहता जलार्थिनो न दन्तिन : केसरिणोऽपि विभ्यति सखे कंठ से सीकर जल को ग्रहण करते हुए, सूर्य की किरणों से तपाये हुए, बहुत ज्यादा प्यास से सताये हुये जल के इच्छुक हाथी शेर से भी नहीं डरते है।
दूसरी और हमारे आलोच्च कवि ने भी ग्रीष्म की प्रचण्डता का वर्णन किया है। उसे भी देखिये:
प्रकृतपुष्करहंस चिरस्थिति : कशरसां सरसां प्रणयन भुवम् ।
तुलयति म यतिस्सयभेदन : स शरदं शरदन्तुरदिग्मुखाम् ॥ आकाश में सूर्य बहुत समय तक स्थित रहता है, पृथ्वी के तडाग जल से शुन्य हो गये, यतियों का अहंकार नष्ट हो गया है । इस श्लोक में यमक अलंकार है। अतः इस श्लोक का एक दूसरा अर्थ भी निकलता है। यह दूसरा अर्थ शरद ऋतु का वर्णन है ।
मेघविजय जी के वर्णनों में यमक अलंकार की सुन्दर छटा है । उनका वर्षा काल वियोगनियों को दुःख देता एवं सुहागिनी नारियों को आनन्द देता हुवा आता
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