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विषय खंड
मेघविजय जी एवं देवानन्द महाकाव्य
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गया है । अर्थात् जिस प्रकार का वर्णन करना होता है उसी प्रकार के शब्दों का प्रयोग किया गया है । शब्दों के चयन करने में महाकवि सिद्धहस्त हैं । इससे ज्ञात होता है कि महाकवि अत्यन्त प्रतिभाशाली थे । माघकाव्य एवं देवानन्दमहाकाव्य में अनेक समानताएं हैं । माघकाव्य के नायक वासुदेव श्री कृष्ण हैं तो देवानन्द महाकाव्य के नायक वासुदेवकुमार हैं जो कि पीछे से विजयदेवसूरि बन जाते हैं । वासुदेव श्री कृष्ण को कंस के दरबार में जाना पड़ा तो हमारे काव्य के नायक को भी जहांगीर के बुलावे पर राजदरबार में जाना पड़ा। वासुदेव कृष्ण रैवतक पवत पर गये थे एवं वासुदेवकुमार भी रैवतक पर्वत पर तीर्थयात्रा के लिये गये थे। इस प्रकार दोनों के नायकों में थोड़ा बहुत साम्य है। प्रस्तुत समस्यापूर्ति में माघकाव्य के सात सगों का प्रयोग किया गया है । अधिकतर माघकाव्य के प्रत्येक श्लोक के चतुर्थ चरण पर समस्यापूर्ति की है । कहीं-कहीं प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय चरण पर भी समस्यापूर्ति की है। समस्यापूर्ति भी पनबन्धादि की तरह एक प्रकार का चित्र-आश्चर्यकर काव्य है। इसीलिये समस्यापूर्ति करते हुए यदि कहीं पर अनुस्वार, विसर्ग आदि न लगाया जाय तो समस्यापूर्ति में किसी प्रकार की हानि नहीं होती । यदि कहीं माघ ने "ललना" या "दिवम्" लिखा हो और काव्यकारने उसे "ललना" "दिव" कर दिया हो तो उसमें किसी प्रकार की आपत्ति नहीं । समस्यापूर्ति में पूरक चरण के शब्दों को न बदल कर अर्थ की पूर्ति करनी पड़ती है। यदि अर्थ की पूर्ति में विघ्न उपस्थित होजाय तो समस्यापूर्ति में आपत्ति हो जाती है। किन्तु ऐसा इस काव्य में कहीं नहीं हुआ। इतना सब कुछ होने पर भी कहीं २ शब्दों में हेरफेर दिखाई पड़ता है। जैसे मुति के स्थान पर ध्युति, हव्यवह के स्थान पर हन्यभूज आदि । किन्तु यह बात अधिकारपूर्वक नहीं कही जा सकती कि यह हेरफेर कवि द्वारा किया गया है या माध के पाठान्तर ही हैं और यदि सात सर्ग की-पादपति में कहीं कवि द्वारा ही ऐसा होजाय तो वह भी क्षम्य है । समस्यापति की महत्वपूर्ण बात यह है कि कवि ने माघ के चरणों का नया ही अर्थ निकाल कर समस्यापूर्ति की है । जहाँ २ माघकाव्य में यमक का प्रयोग है वहाँ-वहाँ कवि ने भी यमक का प्रयोग पूर्ण सफलता से किया है । वही चमत्कार इस काव्य में भी है जो माघकाव्य में दिखाई पड़ता है। कवि का एक मात्र ध्येय अपने गुरु के प्रति भक्तिभाव प्रकट करना था । अतः उन्होंने गुरु के जीवन के मुख्य-मुख्य स्थलों पर ही सुन्दरता से प्रकाश डाला है जिससे उनकी प्रतिमा पर चार चाँद लग गये हैं। मेघविजयजी ने माघ की समस्यापूर्ति के अतिरिक्त अनेक अन्य काव्यों की भी समस्यापति की है जिनमें नैषध एवं मेघदूत की समस्यापूर्ति अत्यन्त प्रसिद्ध है। नैषध की समस्यापूर्ति के आधार पर “शान्तिनाथचरित्र" की रचना की है और मेघदत की समस्यापूर्ति के आधार पर "मेघदूत समस्या लेख" की रचना की है। यह रचना एक पत्र के रूप में है। कवि ने भाद्रपद सुदि पंचमी के बाद वह पत्र अपने आचार्य श्री विजयप्रभसूरि को, जो उस समय देवपाउन में स्थित थे, लिखा था।
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