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श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ
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स्तोत्र
शतक' और हंसविजय गणि का 'अन्योक्ति मुक्तावलि (सं. १६७९), राजशेखरसूरिकृत 'उपदेशचिंतामणि', सोमप्रभाचार्यकृत ' श्रृंगारवराग्यतंरगिणी' ग्रन्थ उल्लेखनीय हैं। संस्कृत में जैनों का भक्ति-काव्य बहुत ही विशाल है । इसे स्तुति, स्तोत्र या स्तव नाम से कहा जाता है । इन स्तोत्रों में कुछ तो विशिष्ट तीर्थकर और मुनियों की स्तुति के रूप में तथा कुछ २४ तीर्थकरों की तथा उनके शासनदेव - देवियों की स्तुति के रूप में है । इनमें कितने ही तो शब्दालंकारों से पूर्ण तथा श्लेषमय भाषा में रचे गये है। बहुत से तो पादपूर्ति के रूप में और कितने ही तार्किक शैली में लिखे गये हैं ।
पहला तो आचार्य स्तुति के रूप में
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जैन समाज में सबसे प्रिय दा स्तोत्र माने गये ह :मानतुंग का 'भक्तामर स्तोत्र' जो कि प्रथम तीर्थंकर की रचा गया है और दूसरा सिद्धसेन या कुमुदचद्र का 'कल्याणमन्दिर स्तोत्र' जिसमें पार्श्वनाथ की स्तुति की गई है । यह भक्तामर की अपेक्षा कुछ अलंकारमय काव्य है । इसी तरह कवि धनञ्जय ( ९ वीं शता. ) का 'विषापहार स्तोत्र' और वादिराज सूरि ( ११ वीं शता.) का 'एकीभाव स्तोत्र' भी समाज में प्रिय हैं । २४ तीर्थंकरों में ऋषभदेव, शीतलनाथ शान्तिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर के नाम पर अनेक स्तुतियां लिखी गई है । चौबीस तीर्थकरों समुदित रूप में समन्तभद्र का 'स्वयम्भूस्तोत्र' अति महत्त्व का हैं । बप्पभट्टिसूरि की चतुर्विंशतिका एवं धनपाल क भ्राता शोभनमुनिकृत 'शोभनस्तुति'' अपरनाम चतुर्विंशति जिनस्तुति आदिस्तुतियां यमकालंकारप्रधान हैं ।
श्लेषमय स्तोत्रों में विवेकसागर रचित ' वीतरागस्तव ' ( ३० अर्थ ) नयचन्द्रसूरि ( सं . १२५८ ) कृत ' स्तंभपार्श्वस्तव' [ १४ अर्थ ] तथा सोमतिलकसूरि एवं रत्नशेखरसूरि रचित अनेकों स्तोत्र हैं । इसी तरह पादपूर्ति स्तोत्रों की संख्या भी बहुत बड़ी है । उसमें भक्तामर और कल्याणमन्दिर स्तोत्रों के छन्दों को लेकर समस्यापूर्ति के रूप में 'ऋषभ भक्तामर ' ( समयसुन्दरगणि), शान्ति भक्तामर (लक्ष्मी तिलक कृर्त ) नेमिभक्तामर अपरनाम प्राणप्रियकाव्य ( रत्नसिंहसूरिकृत ) वीर भक्तामर ' ( श्रीधर्मवर्धन गणिकृत ) ' नेमि भक्तामर' एवं 'जैनधर्मवरस्तोत्र' अथवा अभिनव कल्याणमन्दिर स्तोत्र ( भावप्रभसूरिकृत ) आदि उल्लेखनीय हैं ।
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तार्किक शैली पर समन्तभद्र का 'आत्ममीमांसा स्तोत्र', सिद्धसेन की द्वात्रिं'शिकाएं' और हेमचन्द्र के 'अयोग-व्यच्छेद एवं 'अन्ययोगव्यवच्छेद' स्तोत्र हैं जिनपर अनेक टीकाएं लिखी गई हैं ।
१. जिनरत्न भास्कर
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काव्यमाला, सप्तमगुच्छक, निर्णयसागर प्रेस बम्बई
विविध
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