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२२८ श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ
विविध ये समी ग्रन्थ गुजरात एवं उसके पड़ोसी राज्यों के सांस्कृतिक एवं राजनीतिक इतिहास की दृष्टि से बड़े ही महत्त्वशाली हैं ।
चम्पू :- मध्यकालीन जनरुचिने गद्यपद्यके मिश्रण रूप में चम्पूकाव्यों की देन दी। उपलब्ध चंपुओं में त्रिविक्रमभट्ट का नलचम्पू (सन् ९१५ ई.) सर्व प्रथम है। इसके बाद हमें चम्पू का विकसित और प्रौढ रूप सोमदेव के जैन चम्पू 'यशस्तिलक' (सन् २५९) में मिलता है। इसकी समानता का संस्कृत साहित्य में कोई दूसरा काव्य नहीं । यह चम्पू केवल गद्यपद्य का श्रेष्ठ उदाहरण ही नहीं है, बल्कि जन और अजैन धार्मिक एवं दार्शनिक सिद्धान्तों का भण्डार, राजतंत्र का अनुपम ग्रन्थ, विविध पद्यों की निधि, प्राचीन अनेक कहानियों, दृष्टान्तों और उद्धरणों का सुन्दर खजाना और अनेक नवीन शब्दों का कोष है। सोमदेव की यह कृति उनके कवि हृदय से सम्पन्न विशालपाण्डित्य एवं साहित्यिक प्रतिभा का द्योतक है । इस चम्पू में यशोधर की पौराणिक कथा का वर्णन है जो घरेलू घटना पर आश्रित एक यथार्थ कहानी है । इस दुखान्त घटना के चारों ओर एक प्रकार से नैतिक एवं धार्मिक उपदेशों का जाल पना गया है। सोमदेव के कवित्व की यह सबसे बड़ी कसौटी है कि वे व्यभिचार महत्या पर आश्रित एक कथा पर सुबन्धु और बाण की शैली पर उपन्यास लिखने का साहस कर उसमें सफल हुए । वास्तव में समस्त संस्कृत साहित्य में यास्तिलक ही अकेला एसा काव्य है जो दाम्पत्य जीवन की घटना को ले, उसके कृत्रिम प्रेमभाग को छोड़ भाग्यचक्र के खेल और जीवन के कठोर सत्यों का निरूपण करता है । ग्रन्थ आठ आश्वासों में विभक्त है जिसमें अन्तिम तीन आश्वासों में जैन श्रावकाचार का वर्णन है । कवि का दूसरा महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ 'नीतिवाक्यामत' है । यशस्तिलक की रचना राष्ट्रकूट राजा कृष्ण के सामन्त चालुक्य अरिकेसरी तृतीय के राजकाल में हुई । इसमें तत्कालीन संस्कृति एवं सभ्यता की अनेक बातों का सुन्दर वर्णन है ।
द्वितीय जैन चम्पू 'जीवन्धर चम्पू' है जिसकी रचना महाकवि हरिचन्द्र ने की और इसमें जीवन्धर का चरित्र ११ लम्भकों में वर्णित है। इस चम्पू में यशस्तिलक जैसी प्रकर्षता तो नहीं; पर रचना, सरलता और सरसता की दृष्टि से यह प्रशंसनीय है। पद्यों की अपेक्षा गद्य रचना चमत्कारपूर्ण है । ग्रन्थ में अलंकारों की योजना सुन्दर ढंग से की गई है।
इस कोटि का तृतीय ग्रन्थ 'पुरुदेवचम्पू' है । इसे कवि आशाधर के शिष्य अहहास कवि ने (१३ वीं शता०) लिखा है । चम्पू में आठ स्तवक हैं जिनमें भग.
१ निर्णय सागर प्रेस, बम्बई । २ माणिकचन्द्र दिग. जैन ग्रन्थमाला, बम्बई 3 वाणीविलास प्रेस, तंजोर. ४ माणिकचन्द्र दिग. जैन ग्रन्थमाला, बम्बई।
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