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________________ वसंतगढ की प्राचीन धातु प्रतिमायें ले० डॉ. उमाकान्त प्रेमानन्द शाह ( प्राच्यविद्या मंन्दिर, बड़ोदा ) भूतपूर्व सिरोही रियासत में वांतपरा (गढ) नामक ग्राम है। उसका प्राचीन नाम वसंतगढ़ था । अहमदाबाद - दिल्ली के रेल्वे रास्ते पर सज्जनरोड स्टेशन से करीब पांच मील दूर बस - रास्ते से वसंतगढ ( वांतपरागढ़) जा सकते हैं । आबूरोड स्टेशन से उत्तर में करीब २८ मील पर सज्जनरोड स्टेशन है । करीब त्रीस - चालीस वर्ष पूर्व वसंतगढ़ से एक प्राचीन शिलालेख मिला है । एपिग्राफीया इन्डिका वॉल्युम ९ पृ० १९१ से आगे में वह प्रतिकृतिमें शिलाछापसह प्रसिद्ध हुआ है । उस लेख के अनुसार ( वि०) संवत् ६८२ में किसी सत्यदेव ने एमङ्करी ( वर्तमान गुजरात में यह देवी खिमेलमाता या क्षेमार्या कही जाती है ) । माता का मन्दिर बनवाया था । लेख के अनुसार उस प्रदेश पर वर्मलात और उनके प्रादेशिक अधिकारी राज्जिल या राजिल का शासन था । वर्मलात भिल्लमाल (वर्तमान भीनमाल ) का राजा था । भीममाल आबू के उत्तर-पश्चिम ८० मील दूर वर्तमान जालोर जिले में है । संस्कृत भाषा के मकाकवि माघ के कथनानुसार उनके पितामह सुप्रभदेव वर्मलात के मन्त्री थे । यह वर्मलात वसंतगढ़ के उल्लेख वाला वर्मलात होगा । इस शिलालेख में वसंतगढ़ को वटाकर कहा गया है । वि. सं. १०९९ का पूर्णपाल का एक शिलालेख जो वसंतगढ से मिला है उस में सूर्य और ब्रह्मा के मन्दिरों का उल्लेख है । अभी भी वसन्तगढ़ में इन मन्दिरों के अवशेष हैं' । वसन्तगढ़ में मेवाड़ के राणा कुम्भाने किला बनवाया था जिसके अवशेष आज भी हैं । वहां एक प्राचीन सूर्यमंन्दिर था जिस के अवशेष डॉ. देवदत्त रामकृष्ण भाण्डारकर ने खोज कर अपने रीपोर्ट में प्रकाशित किये थे और जिसकी कला का एक चित्र, स्मिथ और कॉड्रिन्ग्टन के ग्रन्थ, हिस्टरि ऑफ फाइन आर्ट इन इन्डिआ एन्ड सीलोन, चित्र नं. १९ सी, चित्रफलक ७८ बी में प्रकाशित हुआ है । ये सूर्यमन्दिर के अवशेष गुप्तोत्तर - कालीन कला (Post Gupta Art ) के हैं । राजपूताना म्युझियम, अजमेर में नं. २९८ का शिल्प- ब्रह्माणि मातृका की प्रतिमा है जो वसन्तगढ़ से आई है और जो करीब ई० स० की ७-८ वीं सदी की कला का नमूना है । १ वसंतगढ़ के प्राचीन अवशेषों और वसन्तगढ़ के प्राचीन नाम 'वट' या ' वटाकर ' आदि की चर्चा के लिए देखो, प्रोग्रेस रीपोर्ट ऑफ दी आरकयॉलॉजिकल सर्वे ऑफ इन्डिआ, वेस्टर्न सर्कल, जुलाई १९०५ से मार्च १९०६, पृ. ४९ से आगे. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012074
Book TitleYatindrasuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
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