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२०२ श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ
विविध इस प्रकार मृत्तिकामय, लोहमय, मणिमय, शैलमय – कई प्रकार के भोजन बनते थे।
वस्तुतः इस अध्याय में दैनिक जीवन से संबंध रखने वाली मूल्यवान् सामग्री का संनिवेश पाया जाता है। (पृ० २२३-२३४ )
५९ वें अध्याय का नाम काल अध्याय है। जिसमें २७ पटल हैं। पहले पटल में काल विभाग के नाम हैं। दूसरे में गुणों का विवेचन है। तीसरे पटल में उत्पात और चौथे में काल के सूक्ष्म विभागों का उल्लेख है। पांचवें पटल से २७ चे पटल तक जीव - अजीध पदार्थों और प्राणियों का काल के साथ संबंध कहा गया है। बारहवां पटल महत्त्वपूर्ण है। क्योंकि इसमें वह ऋतु और बारह महीनों के क्रम से प्रकृति में होने वाले वृक्ष, वनस्पति, पुष्प, सस्य, ऋतु आदि के परिवर्तन गिनाये गये हैं। उदाहरण के लिये फाल्गुन महीने के सम्बन्ध में कहा हैफाल्गुन मांस में नर-नारिओं के मिथुन मिलकर उत्सव मनाते हैं और मुदित होते हैं । उस समय शीत हट जाता है और कुछ -कुछ उष्णमाव आ जाता है । जिस समय आम्रमंजरी निकलती है और कोयल शब्द करती है उस समय गाने - बजाने और हँसी - खुशी के साथ स्त्रीपुरुप आपानक प्रमोद में मस्त होते हैं । जपा, इन्दीवर, श्यामाक के पुष्पों से आंदोलित ऋतु का नाम वसंत है जिसमें मनुष्य मस्त होकर नाचने लगते हैं, घूमने लगते हैं । स्त्रीपुरुषों के मिथुन मैथुन - कथा - प्रसंगों में लगे हुए नाना भांति से अपना मंडन करते हैं - उसका नाम फाल्गुन मास है । इन ४२ श्लोकों को अपने साहित्य का सबसे प्राचीन बारामासा कहा जा सकता है । (पृ० २४३-४४)
सत्रहवें पटल में प्रातःकाल से लेकर संध्याकाल तक के भिन्न भिन्न व्यवहार बताये गये हैं । जिसमें प्रातराश, मध्याह्न भोजन, उद्यान भोजन आदि हैं। बीसवें पटल में रामायण, भारत और पुराणों की कथाओं का भी उल्लेख है ।
साठवें अध्याय में पूर्वभव अर्थात् देवभव, मनुष्यभव, तिर्यक्भव और नैरयिकभव के जानने की युक्ति बताई गई है । इसीके उत्तरार्ध में उक्त भव के जानने की युक्ति का विचार है।
इस प्रसार यह अंग विना नामक प्राचीन शास्त्र सांस्कृतिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण सामग्री से परिपूर्ण है । निःसन्देह इसकी शब्दावली अनेक स्थलों में अस्पष्ट और गूढ है । इस ग्रन्थ की कोई भी प्राचीन या नवीन टीका उपलब्ध नहीं। प्राकृत कोष भी इन शब्दों के विषय में सहायता नहीं करते । वस्तुतः तो स्वयं अंग विज्जा के आधार पर वर्तमान प्राकृत कोर्षों में अनेक नये शब्दों को जोड़ने की आवश्यकता है । इस ग्रन्थ पर विशेषरूप से स्वतंत्र अर्थ - अनुसंधान की आवश्यकता है। तुलनात्मक सामग्री के आधार पर एवं सांस्कृतिक दृष्टिकोण से यह संभव हो सकेगा कि वस्त्र, भाजन, आभूषण, शयनासन, गृहवस्तु, फलफूल, पुष्पवृक्ष, यान, वाहन, पशु
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