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विषय खंड
जैन श्रमणों के गच्छों पर संक्षिप्त प्रकाश
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उन्नायक महामना वस्तुपाल तेजपाल के गुरु विजयसेनसूरि भी इसी गच्छ के थे । वे एवं उनके शिष्य उदयप्रभ, वासुपूज्यचरित के रचयिता वर्द्धमानसूरि (सं. १२९९) मेरुतुंगसूरि प्रबंध चिन्तामणि (सं. १३५२ ) आदि कई विद्वानों के महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ उपलब्ध हैं । प्रतिमा-लेख भी बहुत से प्रकाशित हैं । चिन्तामणि भूमिगृहस्थ धातु प्रतिमा लेखों में श्रीदेवचन्द्राचार्य नागेद्र गच्छीय का नाम है । सं. १४५५ के धातु प्रतिमा लेख में "पूर्वे नागेन्द्र गच्छे आदौकेशगच्छ सिद्धि कक" उल्लेख मिलने से १५ वीं शती में यह गच्छ उपकेश ( उकेश) गच्छ में समागया प्रतीत होता है । परम्परा नामावलि के लिये देखें पट्टावलि समुश्चच भा. २ पृ. २३२.
नागपुरीय तपागच्छ :- सुप्रसिद्ध वादविजेता वादि देवसूारे के शिष्य पद्यप्रभसूरि ने नागौर में तप करने से सं. ११७४ या ७७ में नागौरी तपाविरुद प्राप्त किया । उसके अनंतर १६ वीं शताब्दी में इसकी परम्परा में पार्श्वचंद्रसूरि नामक प्रसिद्ध विद्वान हुए जिनके नाम से इसका पार्श्वचंद्रगच्छ नाम प्रसिद्ध हुआ । इस गच्छ के श्रावक प्रधानतः बीकानेर, अहमदाबाद व कच्छ प्रान्त में हैं । बीकानेर के श्रीपूज्य देवचंद्रसूरि का स्वर्गवास कुछ वर्ष हुये होगया । अभी कतिपय साधु व यति हैं । इस गच्छ की संस्कृत पट्टावलि "विविध गच्छीय पट्टावली संग्रह" में एवं गु. भाषा में अहमदाबाद से व जैन गुर्जर कविओ भा. २ के परिशिष्ट में प्रकाशित है।
___ कई लोग इसे नामसाम्य पर प्रसिद्ध तपागच्छ की ही शाखा मानते हैं, पर वह सही नहीं है । वास्तव में यह उससे स्वतंत्र है । पट्टावलि के अनुसार तो यह नाम तपागच्छ से भी सौ वर्ष पुराना है पर जहाँ तक मुझे ज्ञात है "नागपुरीय तपागच्छ" नाम का प्रयोग बहुत ही कम हुआ है और वह भी सं. १७ वीं के पहले का नजर नहीं आता।
नाणकीय-पीडवाडा से ईशान कोण में १०॥ माइल पर अवस्थित नाणा ग्राम से यह गच्छ निकला है । १३ वीं से १६ वीं तक के इस गच्छ के लेख प्राप्त होते हैं। इसका अपर नाम नाण, नाणावाल व शानकीय भी मिलता है।
निवृत्ति-संभवतः निवृत्ति कुल से ही पीछे से इस गच्छरूप में प्रसिद्ध हुआ हो । समरा शाह रास के कर्ता अंबदेवसूरि इसी गच्छ के थे । इस गच्छ के १०-१५-१६ वीं शती के कतिपय अभिलेख प्रकाशित हैं।
नागर गच्छ-धातु प्रतिमा लेखसंग्रह भा. २ ले. १३ में नाम आता है, पर नागेन्द्र को ही नागर पढा गया हो तो पता नहीं ।
निबजीयगच्छ-गच्छ मत प्रबन्ध के पू, ४४ में इसका उल्लेख है। '
पंचासरीय गच्छ-संभवतः पाटण के पंचासरा स्थान से इसका संबन्ध हो । नाहर ले. १८७३ में सं. ११२५ के लेख में इसका नाम ? प्रश्नवाचक चिन्ह के साथ छपा है।
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