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श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ
विविध
निकालना संघपति का प्रभावशाली, अत्यन्त धनपति और राजसम्मानित एवं अन्य राजाओं की राज्यसभाओं में माल - प्रतिष्ठाप्राप्त होना सहज सिद्ध होता है। सम्राट होशंगशाह भी इन छः ही भ्राताओं का बड़ा मान रखता था । विशिष्ट कार्य एवं अवसरों पर इनकी वह संमतियां लेता था। इन छः भ्राताओं के प्रयत्नों से ही राजा केसीदास, राजाहरिराज, राजा अमरदास और वराट, लूणार और बाहड नामक अति प्रसिद्ध एवं स्वाभिमानी ब्राह्मणों को सम्राट् होशंगशाह की कारागृह में से मुक्ति मिली थी। विद्वान्वर्य मंत्री मण्डन
यह झांझण का पौत्र और बाहड़ का पुत्र था । यह बड़ा प्रतिभासम्पन्न, विद्वान् और राजनीतिज्ञ था । श्रीमंतकुल में उत्पन्न होने के कारण इसमें लक्ष्मी और सरस्वती दोनों का अश्रुत एवं अभूतपूर्व मेल था । यह उदार और बड़ा दयालु भी था । अल्प वय से ही यह बादशाह हौशंग का कृपापा बन गया था और आगे जाकर यह बादशाह का प्रमुख मंत्री बना । सम्राद इसकी विद्वता पर भी बहुत मुग्ध था । मण्डन के प्रभाव से माण्डव पुर में विद्वानों का समागम बढ चला था और राजसभा में भी आयेदिन विद्वानों का सत्कार होता था। राजकार्य के उपरान्त बचे हुए समय को यह विद्वद् सभाओं में और विद्वद् गोष्ठियों में ही व्यय करता था । राजसभा में जाने के पूर्व प्रातः होते ही इसके महालय में कवियों एवं विद्वानों का मेला सा लगा रहता था। यह प्रत्येक विद्धन् और कवि का बड़ा सम्मान करता था और उनको भोजन, वस्त्र एवं योग्य पारितोषिक देकर उनका सम्मान करता और उनका उत्साह बढाता था । यह संगीत का भी बड़ा प्रेमी था । रात्रि को निश्चित समय पर संगीत कार्यक्रम प्रस्तुत होता था । जिसमें स्थानीय और नवागंतुक संगीतज्ञों का संगीतप्रदर्शन और प्रतियोगितायें होती थीं । इसका संगीतप्रेम श्रवण करके गूर्जर, राजस्थान और अन्य प्रान्तों से भी संगीत कलाकार बड़ी लम्बी-लम्बी यात्रायें करके आते थे । यह भी उनका बड़े प्रेम से सत्कार एवं मूल्य करता था और उनको सन्तृप्त करके लौटाता था । मण्डन स्वयं भी कुशल संगीतज्ञ एवं यंत्रवादक था । बड़े २ संगीताचार्य इसकी संगीत में निपुणता देख कर अचम्भित रह जाते थेः । संगीत के अतिरिक्त मण्डन ज्योतिष, छंद, न्याय, व्याकरण आदि अन्य विद्याओं एवं कलाओं का भी मर्मज्ञ था । इसकी सभा में कभी २ धर्मवाद भी होते थे और प्रमुख का स्थान इसके लिये सुरक्षित रहता था । यह इसके निष्पक्ष एवं असाम्प्रदायिक भावनाओं का परिचायक है । सांख्य, बौद्ध, जैन, वैदिक, वैशेषिक आदि विरोधी विचारधाराओं का एक स्थल पर यों शान्त विचार - विनिमय एवं शास्त्रार्थों का निर्वाह होते रहना निस्सन्देह मण्डन में अद्भुत ज्ञान, धैर्य, क्षमता-क्षमा और न्यायादि गुणों का होना सिद्ध करता है । मण्डन की विद्वद्-सभा में कई विद्वान् एवं कुशलकवि स्थायी रूप से रहते थे जिनका समस्त व्यय वह ही सहन करता था। मण्डन के द्वारा लिखे गये ग्रन्थों में अभी निम्नलिखित ग्रंथों का परिचय प्रकाश में आया है
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