________________
विषय खंड
मन्त्री मण्डन और उसका गौरवशाली वंश
१२७
१५ वीं शताब्दी नेमिनाथ फाग बारहमास सं. १५०० पूर्व
कान्ह ,, कवित्त स्थूळिभद्र (कवित्त) सं. १४८१ सोमसुंदरसूरि
उक्त सूची में कुछ कृतियों के काव्यरूपों का परिचय दिया गया है। प्रस्तुत सूची को तैयार करने में गुजराती विद्वान स्वर्गीय मोहनलालजी दलीचंद देसाई के ग्रंथ - जैन गुर्जर कवियों भाग १ और ३ से पूरी सहायता मिली है। उक्त सूची में अनेक रचनाओं की प्राचीन हस्तलिखित प्रतियां अथवा आधुनिक प्रतिलिपियाँ हिन्दी जैन साहित्य के प्रसिद्ध विद्वान और शोधक श्री अगरचंद नाहटा ने अपने अभय जैन ग्रंथालय, बीकानेर में संग्रहीत की हैं । उनकी इस सामग्री तथा नाहटा जी के लेखों से बड़ी भारी सहायता मिली है। जिसके लिए लेखक उनका आभारी है।
अनेक स्थानों के जैन भंडारों की शोघ अभी नहीं हो पाई है। दिल्ली, मेरठ बड़ौदा, नागौर, जयपुर, अजमेर आदि स्थानों के जैन भंडारों से खड़ी बोली का प्रारंभिक स्वरूप प्रदान करने वाली अनेक रचनाएं उपलब्ध होने की आशा है। अतः शोध होने पर उनपर भी यथासमय प्रकाश डाला जायगा ।
जो भी हो, इतना स्पष्ट है कि यह वाङ्मय विशाल है तथा जैन भंडारों में भरा पड़ा है, तथा इस का महत्व अत्यन्त असाधारण है । और यही आदिकालीन हिन्दी-जैन-साहित्य हिन्दी के आदिकाल की अनेक उलझी कड़ियों को सुलझाने में पूर्ण सक्षम है। आशा है प्रस्तुत लेख से आदिकालीन हिन्दी-जैन-साहित्य का कुछ परिचय मिल सकेगा। यदि इस साहित्य के सम्बन्ध में अबतक बनी “ धार्मिक साहित्य मात्र" जैसी भ्रांत धारणाओं का निराकरण हो सका और इन कृतियों के प्रति आलोचना की एक निष्पक्ष दृष्टि या 'नीर क्षीर विवेक' को प्रश्रय मिल सका तो लेखक अपना प्रयास सफल समझेगा । कहना न होगा कि हिन्दी-जैन-साहित्य आदिकालीन साहित्य का एक अविभाज्य और असाधारण अंग है ।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org