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विषय खंड आदिकाल का हिन्दी जैन साहित्य और उसकी विशेषताएं ११५ अतः ये प्रतियां अपनी जैनेतर साहित्य - सिद्धों, नाथों तथा अन्यान्य साहित्य-की प्राप्त प्रतियों से अधिक प्रामाणिक व प्राचीनतम हैं । ९. वि + शुद्ध ऐतिहासिक रचनाएं -
___ आदिकालीन हिन्दी जैन साहित्य में सबसे बड़ी एक विशेषता यह हैकि अनेक रचनाएं विशुद्ध ऐतिहासिक हैं जिनमें अनेक गीतिकाव्य हैं, खंडकाव्य हैं तथा अनेक गीति मुक्तक । इन ऐतिहासिक रचनाओं से तत्कालीन जैन कवियों और लेखकों के इतिहास से सम्बन्ध स्पष्ट होते हैं । साथ ही अनेक ऐतिहासिक स्थानों का विवेचन, तीर्थों, नगरों, मन्दिरों, शिलालेखों, आक्रमणों, जैन संघों, ऐतिहासिक यात्राओं तथा प्रसिद्ध ऐतिहासिक व्यक्तियों के वर्णन मिलते हैं । उदाहरणार्थ - सत्यपुरीय महावीर उत्साह संघपति समरा रास, जिनकुशलसूरि पट्टाभिषेक रास, पेथडरास, देवरत्नसूरि फाग आदि अनेक ग्रंथ रचनाएं ऐसी हैं जिनमें तत्कालीन राजा, बादशाह तथा प्रसिद्ध जैन तीर्थों, महापुरुषों तथा ऐतिहासिक चरित्रनायकों के वर्णन-विवरण मिलते हैं।
कई स्थानों पर तो ऐसे वर्णन भी मिलते हैं जहां जैन कवि मुसलमान बादशाहों को प्रभावित करते देखे गये हैं तथा उनकी विद्वत्ता पर उनको राज्य की ओर से अनेक सम्मान दिए गये - यथा-सं. १३३५ में जिनप्रभसूरि ने दिल्ली में यवनपति मुहम्मदशाह से भेंट की थी और अपने व्याख्यान द्वारा उन्होंने सुल्तान का मन मोह लिया । सुल्तान ने उनकी बड़ी भक्ति की, फरमान निकाला और जुलूस निकाला तथा वसति-निर्माण कराई 1+ जिनप्रभसूरि ने यवनपति कुतुबुद्दीन को भी प्रसन्न कर लिया था। * अतः इन जैनों को राजकीय मंत्रित्व आदि कई अनेक पद मिलते थे । वाणिज्यमन्त्री तो अधिकतर जैन ही होते थे । पेथड, समरसिंह आदि संबंधित पेथड और समरा रास- इसी प्रकार के हैं। इसी प्रकार वस्तुपाल तेजपाल का रास' तथा 'रेवंतगिरि रास'x आदि रचनाएं बड़ी महत्वपूर्ण हैं जो विशुद्ध ऐतिहासिक है ।
१. जैन साहित्य संशोधक-खण्ड ३, अंक ३, पृ. २४१-२४३ संपादक मुमि जिनविजयजी सं. १९८४ २. जैन ऐतिहासिक गुर्जर काव्य संचय-मुनि जिनविजयजी पृ. २३८. 3. ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह -श्री अगरचंद भंवरलाल नाहटा, पृ. १५. ४. प्राचीन गुर्जर काव्य संग्रह -- श्री सी. डी. दलाल -- पृ. २४. परिशिष्ट १०. (AppendixX) ५. जै. ऐ, गु. का. सं.-मुनिजिनविजयजी, पृ. १५०. + ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह - श्री. नाहटा बंधु पृ.. प्रस्तावना पृ. १६ द्वारा डॉ. हीरालाल जैन
द्वारा लिखित. * देखिए वही ग्रंथ-जिनप्रभसुरिगीत पृ. १२. x देखिए प्रा. गु. का. सं. भी. दलाल संपादित बडौदा संस्करण, सन्. १९२०, पृ.१-७.
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