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प्रस्तावला
पृ. २२३ में शान्तिनाथ - चल्लिके कलका नाम 'देवसूरि ' ( स. १२८२ ) ऐसा दर्शाया है, लेकिन उसका वास्तविक नाम 'मुनिदेवसूरि' मिलता है, और उसका रचनासंवत् १३२२ मिलता है।
पृ. २१९ में कथारत्मकोक्के कर्ताका नाम 'देवम्भसूरि' ऐसा दिखलाया है, लेकिन उसका नाम 'देवभद्रसूरि ' मिलता है ।
पृ. २२० में ग्रन्थका नाम 'भरटकत्रिंशिका' बताया है. लेकिन उसका नाम 'भरटकद्वात्रिंशिका' प्रसिद्ध है । तथा 'रत्नचूडा-कथा ' छपा है, वहाँ रत्नचूड-कथा नाम चाहिए । वज्रायुद्ध नाम छपा है, वहाँ वज्रायुध होना चाहिए ।
पृ. २२२ में 'प्रबुद्धरौहिणेय ' के कर्ता रामभद्रको जिनप्रभसूरिका शिष्य बताया है, लेकिन उसने तो अपनेको जयप्रभसूरिका शिष्य कहा है।
पृ. २२३ में वादीभसिंहके साथ कवि धनपालका नाम-1 -निर्देश कर 'ये दोनों मान्य जैनाचार्य थे' बताया है, लेकिन महाकवि धनपाल गृहस्थ था, वह जैनाचार्य नहि कहा गया है ।
पृ. २२४ में यशोविजय-प्रन्थमाला- प्रकाशित शान्तिनाथ-चरितके कर्ताका नाम 'मुनिचंद्रसूरि' बताया है, लेकिन वास्तविकमें उसका नाम 'मुनिभद्रसूरि' मिलता है।
- नरनारायणनन्द नाम छपा है, वहाँ नरनारायणानन्द समझना चाहीए ।
पृ. २२५ में 'अष्टलक्षी' को काव्य कहा है, वास्तविक में 'राजानो ददते सौख्यम्' इसकी व्याख्यारूप होनेसे आठ लाख अर्थवाली यह कृति अर्थरत्नावली 'अष्टलक्षार्थी' कही जाती है ।
'चरित्रसुन्दर' नाम छपा है, वहाँ 'चारित्रसुन्दर' होना चाहीए, और 'अरसिंह' छपा है, . वहाँ 'अरिसिंह' होना चाहीए ।
पृ. २२६ में 'इन्दुदूत' काव्यके कर्ताका नाम 'जिनविजयगणि' दर्शाया है, वास्तविकमें 'विनयविजयगणि' होना चाहीए ।
पृ. २२९ में 'काव्यशृंगार मंडन' ऐसा बताया है, वास्तविकमें 'काव्यमंडन' और 'शृङ्गाकाण्ड' दो भिन्न प्रन्थ है ।
'मध्याह्न व्याख्या' नाम बताया है, उसका स्पष्ट नाम 'मध्याह्नव्याख्यान-पद्धति' मिलता है, और उसके कर्ताका नाम 'हर्षमंडनगणि' बताया है, लेकिन वास्तविक नाम 'हर्षनन्दन गणि' मिलता है ।
पृ. २३० में उपदेश चिन्तामणिको राजशेखरसूरि-कृत बताया है, लेकिन वह ग्रन्थ जयशेखरसूरि-रचित है ।
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