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श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ
विविध
हुए अपने संगीत को उस पैमाने पे लाकर खडा कर दो जैसे कि हम एक सुई की नोक पर एक थाली को अधर टिका रहे हैं, अपने हाथ में तैल से लबालब भरा कटोरा लिये घूम रहे हैं उसमें से एक बूंद नीचे न गिरने पावे । इस प्रकार जब हमारा ध्यान संगीत स्तवना करते समय केन्द्रित होने लगे, रोम रोम में प्रभु गुण गाण गूंजने लगे तब समझ लो मुक्ति हम से दूर नहीं।
तो, हमारा जीवन संगीत मय हो, विश्व संगीत मय हो और संगीत की तन्मयता में हम सब आत्मविभोर हो उठे और ऐसे समान का, विश्व का निर्माण हो जहां झूठ, कपट, हिंसा, घमंड आदि बातों का नामो निशॉन न हो।
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