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श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ
विविध
यों से परिवृत होकर वाटिका में गई। दैवयोग से ऐसा भयंकर तूफान आया कि हम लोग उस में उड कर भयानक अटवी में आ गिरी। फिर यत्र तत्र भ्रमण करती हुई आपकी किर्ती सुनकर साक्षात्कार करने के लिए यहां पहुंची है। आज हमारा धन्य दिवस है जो जिनेश्वर प्रभु के दर्शन हुए। एवं आप से साक्षात्कार हुआ। रत्नावती ने कहा - मुझे भी आपकी सखि को देखकर हार्दिक उल्लास हुआ, कृपा कर आप दोनों मेरे यहां पधारिये !
___ अब वे दोनों स्त्रीरूप धारी मित्र रत्नावती के साथ राजप्रासाद में आये। राजकुमारी ने उन दोनों को बड़े सम्मान पूर्वक अपने यहां ठहराया। कुछ दिन बाद नारिरूपी सुमतिकुमार ने रत्नावती से बात ही बात में पूछा कि- सखि तुम्हारा क्यों विवाह नहीं होता ? उसने कहा मेरा पूर्व भव का पति मिलने पर ही मैं विवाह करूंगी ! मंत्रीपुत्र सुमतिकुमार ने कहा तुम्हारा पूर्वभव वृत्तान्त एक पत्र में लिखकर अपने हाथ में रखो ! रत्नावती के ऐसा करने पर सुमतिकुमार ने स्त्रीरुपी राजकुमार को बुला कर रत्नावती का पूर्वभव वृत्तान्त कहने के लिए कहा । राजकुमार कहने लगा और रत्नावती ध्यानपूर्वक सुनने लगी । कुमार ने कहा :
एक भील दम्पति पर्वत की गुफा में निवास करते थे। एकदिन उन्होंने मुनिराज के दर्शन किये । उन्हें मुनिराज ने नवकार मंत्र सिखाया । जिसके स्मरण करने के प्रभाव से यह राजा की पुत्री रूप में अवतरित हुई । इस प्रकार अपना पूर्वभव श्रवण कर रत्नावती चित्त में अत्यन्त चमत्कृत हुई, दूसरे ही क्षण राजकुमार को स्त्रीरूप में देख कर उदास हो गई । मंत्रीपुत्र व राजकुमार ने तत्काल अपना पुरुष रूप धारण किया । राजकुमारी अपने पूर्वजन्म के पतिको पाकर अत्यन्त प्रमुदित हुई। अब वे दोनों मित्र पुनः स्त्रीरूप धारण कर राजमहलों से बाहर निकले । राजा सिंहरथ से मिलने के लिए राजसिंह और सुमतिकुमार ने चिन्तामणि रत्न के प्रभाव से सार्थवाह का रूप किया समस्त सार्थ और वस्तुएँ विकुर्वित हुई।
राजकुमारी रत्नावती ने सहेली के मारफत माता से कहलाया कि वर प्राप्ति के लिए उपाय किया जाय । रानी के निवेदन पर राजा ने यह सोच कर पडह बजाने का विचार किया - कदाच कोई वर आ मिले । नगर में पडह बजवाया गया कि राजकुमारी की पूर्वभव कथा कहने वाले से कन्या का विवाह किया जायगा । राजसिंह और सुमतिकुमार ने पडह का स्पर्श किया । तलारक्षक ने उन्हें राजसभामें ले जाकर राजा सिंहरथ के समक्ष उपस्थित किया । नरेश्वर ने राजकुमारी को बुलाया उसने अपने पूर्वजन्म की कथा कागज पर लिख कर पिता को दी। राजसिंह ने भी पूर्व जन्म की कथा बतलाई जिसे सुनकर राजा अत्यन्त प्रमुदित हुवा और बड़े भारी समारोहपूर्वक राजसिंह रत्नावती का विवाह कर दिया । करमोचन के समय राजा ने हाथी घोडा आभरण आदि प्रचुर परिमाण में दिये । राजसिंह और रत्नवती सुखपूर्वक रहने लगे।
एक दिन राजसिंह ने मन में विचार किया स्वसुरगृह में निवास करना मेरे लिए
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