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विषय खंड
श्री नमस्कार महामंत्र महात्मय कथाएँ
स्वस्थान गया । राजाने सेठ को गजारूढ कर स्वयं छत्र धारण कर नगर प्रवेश कराया और क्षमायाचना की । फिर यक्षायतन निर्माण कर मूर्ति निर्माण करवायी, यही इस मंदिर का इतिहास है ।
राजकुमार अपने मित्र मंत्रीपुत्र के साथ वहां से अगे बढा । और नाना प्रकार के कौतुहल देखते हुए एक वन में पहुंचे । आम्रवृक्षों की शीतल छाया वाला एक सुन्दर जलाशय देखकर वे दोनों वहां विश्राम करने के लिए ठहरे । राजकुमार को नींद आगई और मंत्रीपुत्र समीपवर्ती वृक्षों से आहार के निमित्त फल फूल लेने लगा ।
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इसी समय आकशमार्ग से जाते हुए एक विद्याधर ने सौन्दर्यमूर्ति राजसिंह को सोये हुए देखकर सोचा- यदि इस अत्यन्त सुन्दर पुरुष को मेरी स्त्री कहीं देख लेगी तो इसके प्रति प्रीति धारण कर मुझे त्याग देगी, और वह पीछे आ ही रही है। उसने यह सोचकर एक वन की जडी लेकर कुमार के हाथ को बांध दी जिससे वह स्त्री रूप धारी हो गया । विद्याधर के जाने के पश्चात् जब उस मार्ग से विद्याधरी आयी तो उसने सोचा इस सुन्दर रमणी को यादे मेरा पति देखेगा तो अवश्य ही इस पर आसक्त होकर मेरा त्याग कर देगा । उसने तुरत एक वनौषधि लेकर राजकुमार के दाहिने हाथ में बांध दी जिससे वह पुनः अपने पुरुष रूप में आ गया । मन्त्री पुत्र सुमति कुमार ने दूर खडे खडे सारा वृतान्त देखा और उन दोनों औषधियों को लेकर आनन्दित चित्त से राजकुमार को जगाया और राजकुमारी से व्याह करने में सहायक - साधन इन जडियों की प्राप्ति की सारी बात कर सुनायी। वे दोनों मित्र क्रमशः आगे चलते हुए पदमपुर पहुंचे । सर्व प्रथम उन्होंने जिनालयको देखा उसमें प्रवेश किया तो जिनेश्वर भगवान के दिव्य तेजोमय जगमगाहट करते हुए बिम्ब के दर्शन हुए। उन्होंने कहा- आज हमारा जन्म सफल हो गया जो जिनदर्शन प्राप्त किया, हमारे दुख, दोहग सब टले ओर मनोवांछित फल प्राप्ति हुई । प्रभु की स्तवना कर वे चिन्तामणि के प्रभाव से जिना - लय के पास रहते हुए अरिहन्त का ध्यान करने लगे ।
एक दिन राजकुमारी रत्नावती अनेक स्त्रियों के साथ उस जिनालय में आई । राजकुमार राजसिंह और मन्त्री पुत्र सुमति कुमार दोनों स्त्री का रूप कर उसके पास खडे हो गए । रत्नवती ने सुगन्धित जल लेकर प्रभु को न्हवण कराया, फिर चन्दन घनसगर, कस्तूरी आदि से नव अंग अर्चना कर दामन्नक, मरूवा, जाइ, जूही, मुचकुन्द, केतकि, चम्पक आदि पुष्पों को भावोल्लास पूर्वक चढाए । फिर फलादि चढा कर गीत वाजित्रादि के साथ नृत्यादि से भक्ति कर रत्नावती जिना - लय से बाहर निकली उसने बाहर खड़े स्त्री रूपधारी होने मित्रों को देखा । राजसिंह के अत्यन्त सुन्दर रूप को देखकर उसने सम्मान पूर्वक पूछा कि आप लोग कहां से आ रही हैं ? सुमतिकुमार ने कहा -: रतनपुर के राजा मृगङ्क की यह पुत्री है, और मैं इसकी दासी हूं । एकवार वसन्त ऋतु में क्रीडा करने के निमित्त हम लोग सखि -
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