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विषय खंड
श्री नमस्कार मंत्र-महात्म्य की कथाएँ
नवकार मंत्र की व्याख्या और उसके महात्म्य पर बहुत बड़ा साहित्य निर्मित हुआ है। कई शब्द शास्त्री मुनियोंने एक एक पद के शताद्धिक अर्थ किये है। एसी कुछ शतार्थी स्वताए मंत्रराज गुणकल्प महोदधि, और अनेकार्थ रत्नमंजूषा में प्रकाशित भी हो चुके हैं । प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश राजस्थानी, गूजराती आदि के कई स्तुति स्तोत्र प्रकाशित हुए हैं। कुच्छ प्रकरणग्रंथ भी रचे गये हैं । नमस्कार मंत्र सम्बधी रचनाओं के दो विशिष्ट संग्रह शीघ्र ही प्रकाशित होनेवाले हैं। जिनमें से पहला मुनि जिनविजयजी सम्पादित के कई फरमे हमने कई वर्ष पूर्व छपे देखे थे । दूसरा जैन साहित्य विकाश मंडल की ओर से तय्यार हो रहा है । मुनि भद्रंकरविजयजी ने गूजराती में एक ग्रंथ प्रकाशित किया है जिसके अंत मे खरतर गच्छीय श्रीजितचंद्रसरि रचित पंच परमेष्टि प्रकरण आदि भी सानुवाद प्रकाशित हुए हैं। आत्मानंद सभा भावनगर से एक इना योजना इस विषय में निबन्ध तैयार कराने के लिए की गयी थी जिसमें बंगाली विद्वान श्रीहरिसत्य भट्टाचार्य का निबन्ध सर्व प्रथम रहा । उस निबन्ध का गूजराती अनुवाद भी भावनगर की आत्मानंद सभा से प्रकाशित हो चुका है। इसी प्रकार नमस्कार महामंत्र के विशेष विधिविधान और उनके फलको बतलानेवाला नवकार कल्प भी प्रकाशित है श्वेताम्बर समाज में तो इस सम्बन्ध में बहुत विशाल साहित्य है, अनेक ग्रन्थो की टीकाओं में इस मंत्र के महात्म्य को प्रकट करने वाली कई कथाएँ भी प्राप्त होती हैं, और उन कथाओ को लेकर कई रास आदि रचे गये हैं। ऐसे ही एक सतरहकी शदी के कवि हीरकलश कृत रास के आधार से कुछ कथाएँ यहां प्रकाशित की जा रही हैं। रासकार ने मल एक कथा की उपकथाओं के रूप में अन्य कई कथाओं को गूंथ लिया है यह इस रास की उल्लेखनीय विशेषता है ।
राजसिंह रत्नावती कथा भरतक्षेत्र में रयणापुर नामक नगर था । वहा मृगाङ्क नरेश्वर राज्य करता था। जिसकी पटरानी विजया शीलादि गुणों से विभूषित थी। राजसुख भोगते हुए रानी ने सिंह स्वप्न सूचित राजसिंह नामक कुमार को जन्म दिया । पांच धाय माताओं द्वारा लालन पालन होकर कुमार बडा हुआ । उसे बहुत्तर कलाओं का अभ्यास कराया गया । मंत्रीश्वर मतिसागर का पुत्र सुमतिकुमार उसका समवयस्क था, जिससे उसकी मित्रता हो गई । एक दिन दोनों मित्र अश्वारूढ हो कर धूमने निकले । उन्हें वन में घमते मध्यान्ह हो गया। धप में व्याकुल होकर वे एक आम्रवृक्ष के नीचे विश्राम कर रहे थे तो एक पथिक उनके दृष्टिगोचर हुआ । कुमार ने उसे बुलाकर पूछा आप कहां से आ रहे हैं ओर किस तरफ जावेंगे ? पथिक ने कहा - मैं कदमपुर नगर से शत्रुञ्जय गिरि की यात्रा के हेतु निकला हू । राजकुमार ने उसे कोई कौतुक की बात सुनाने का आदेश दिया।
.. पथिक ने कहा पदमपुर में सिंहरथ राजा को कमला नामक रानी है। उसको रत्नावती नामक अत्यन्त सुन्दर पुत्री है जो चौसठ कलाओं में निपुण और तरुण वय
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