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श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ
विविध
व वंदन - नमन समस्त पापों का नाश करनेवाला एवं समस्त मंगलों में प्रधान व श्रेष्ठ है । इसी भाव को पीछे के चार पदों में अभिव्यक्त किया गया है । पूरा नवकार मंत्र इस प्रकार है
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णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं
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णमो आयरियाणं
णमो उवज्झायाणं
अरिहन्तों को नमस्कार सिद्धों को नमस्कार
आचार्यों को नमस्कार उपाध्यायों को नमस्कार
णमो लोए सव्वसाहूणं • लोक के समस्त साधुओं को नमस्कार एसोपंच णमुक्कारो - ये पांचो नमस्कार
सव्व पावपणासो
समस्त पापों का नाश करनेवाले हैं ।
मंगलाणंच सव्वेसिं सर्व मंगलों में
पढमं हवइ मंगलं । – यह प्रथम या प्रधान मंगल है ।
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इस नमस्कार मंत्र के जाप की सुविधा की दृष्टि से संक्षिप्तिकरण भी किया गया है । संस्कृत में नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधुभ्यः प्रसिद्ध है ही, प्राकृत में पांचों पदों का प्रथमाक्षर लेकर 'असिआउसाय नमः' मंत्र के जाप का विधान भी है । सब से संक्षिप्त रूप प्रणव मंत्र “ॐ” है। जिसमें पंच परमेष्ठि के सूचक अ आ आ उम् इन पांचों का संयुक्त रूप ॐ कार माना गया है । यो ॐ प्रणव मंत्र सर्व मान्य है ही । इन है से पहले के पांच पद तो समस्त जैन सम्प्रदायों को समान रूप से मान्य हैं । दिगम्बर, श्वेताम्बर स्थानकवाली तेरापंथी आदि प्रत्येक जैन लिए यह आदर्श मंत्र है । महात्म्य वर्णन वाले अंतिम चार पदों को कोई कोई प्रधानता नहीं देते, व कोई कोई देते हैं। कई जैन सूत्रों का प्रारंभ भी नमस्कर मंत्र से होता है । षड़ावश्यक आदि सभी विधि विधान एवं व्याख्यान भी इसी मंत्रोच्चार के साथ प्रारंभ किया जाता है। इस मंत्र के पद वाक्यों में कोई भी व्यक्ति न्यूताधिक कर सके इसलिए अक्षर आदि की गणना भी निश्चित कर दी गयी है । ८ संपदा, ६८ लघु अक्षर, ७ गुरु अक्षर इस मंत्र के बतलाये गये हैं । इसके जप का बडा भारी महात्म्य है । लक्ष और कोटी की संख्या में जप करने का विधान पाया जाता है, और उसका बडा फल बतलाया गया है ।
जिन मणिकों के द्वारा इस मंत्र का जाप किया जाता है उनकी संख्या १०८ होती है, जो इन पंच परमेष्ठियों के गुणों की संख्या पर आधारित है । अरिहंत के १२, सिद्ध के ८, आचार्य के ३६, उपाध्याय के २५, और साधु के २७ गुण, कुल मिलाकर १०८ हो जाते हैं । नवकार मंत्र को इन १०८ मणियोंवाली माला से गुणने के कारण ही इसका नाम नवकारवाली पड़ा। जैनोंके अनुकरण में अन्य धर्मावलम्बियों ने भी जप करनेवाली माला १०८ मणको की ही स्वीकार की, यद्यपि उनकी संख्या १०८ होने का कोई स्पष्ट कारण उन लोगों में नहीं बतलाया गया है ।
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