________________
श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ
विविध
केवली भद्रबाहुस्वामि, श्री जिनभद्रगणी क्षमाक्षमण, विद्वशिरोमणी श्री हरिभद्र सूरि, वृतिकार श्री मलयगिरीजी, आदि अनेक पूर्वाचार्यों ने भी अरिहंत का यही अर्थ किया है । क्या वह असत्य है ? नहीं वह असत्य नहीं सत्य है । हम अपने अभिमत की पुष्टि करने के लिये जो कपोलकल्पित अर्थ करते हैं वह अप्रामाणिक हैं । जो लोग अरिहंत शद्व का मनमाना अर्थ कर उसमें अपने अवास्तविक तर्कों का क्षेपन करते हैं, उनको पूर्वाचार्यों के बनाए शास्त्रों का मनन करना चाहिये । मनन करते समय ममत्व और दृष्टिराग का पटल आखों से हटा लेना चाहिये । क्यों कि कामराग और स्नेहराग को हटाना तो सरल है, परन्तु दृष्टिराग बडी कठिनता दूर होता हैं । तभी तो श्रीमद् हेमचन्द्र सूरिजी ने वीतराग स्तोत्र में लिखा है कि
६४
कामराग स्नेहरागानीषत्करनिवारणौ । दृष्टिरागस्तु पापीयान् दुरुच्छेदः सतामपि ॥ १०॥
यदि उक्त स्थिति वाले होकर सत्य का अवलोकन किया जाय तो अवश्य ही सत्य की प्राप्ति हो जाती है ।
प्रश्न :- अरिहंत, अरुहंत, और अरहंत ऐसे तीन पद व्याकरण से “अई" धातु से बनते हैं। तो फिर उन तीनों में से यहाँ अरिहंत ही क्यों लिया ? अरहंत और अरुहंत क्यों नहीं लिये ?
उत्तर - - अरहंत और अरुहंत इन दो पदों का पाठभेद के रूप में कहीं कहीं उपयोग हुवा है । परन्तु वह अन्य अर्थों में। न की इस अर्थ में और नवकार में । श्री महानिशीथ सूत्र में अरिहंताणं का ही प्रयोग है, नमस्कार के उपधान के अधिकार में । अरहंत और अरहंत का अर्थ इस प्रकार है
' अर्हन्ति देवादिकृतां पूजामित्यर्हन्तः ' अरहंत याने देवादि द्वारा पूजित ।
न रोहति भूयः संसारे कर्षितत्वात् । अजन्मनि सिद्धे ।
Jain Educationa International
समुत्पद्यते इत्यरुः, संसारकारकानां कर्मणां निर्मूलः
संसार में पुनः जो उत्पन्न नहीं होते हैं, उन्हें अरुह कहते है-कर्मों का समूल नाश करने से उनका पुनर्जन्म नहीं होता ।
उक्त दोनों पाठों से यह सिद्ध होता है कि अरहंत याने पूजा के योग्य, और जिन्होंने समस्त कर्मों को निर्मूल कर दिया है वे अरुह याने सिद्ध । यहाँ जरा ममत्व को छोड़कर सोचो जो आत्मा कुछ काल पूर्व हमारे जसे ही सकर्मा एवं संसारी आत्मा थी । वही पुजा के योग्य कैसे बन गई ? तब हम इसके उत्तर में झट कह देणे कि- अनादि काल से आत्मा के साथ जो कर्मों का मैल था याने आत्मा के गुणों के घातक जो कर्म थे उनको सम्यग् क्रियानुष्ठानों द्वारा आत्मा से दूर कर दिये
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org