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अभिनंदन ग्रंथ
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विविध विषयखंड
भारतीय दर्शनों में आत्मस्वरूप
लेखक:- सा. वि. श्रीमद्विजयभूपेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज अन्लेवासी
मुनिश्रीकल्याणविजयजी महाराज
पुनर्जन्म और मोक्ष माननेवाले सभी दार्शनिक देहादिजड़भिन्न आत्म तत्त्व को मानते हैं। चाहे फिर वह आत्मा किसी के मत से सर्वव्यापक हो या किसी की मान्यता से अव्यापक हो । कितनेक दार्शनिक उस आत्मा को एक या कुछ अनेक, किसी का मन्तव्य क्षणिकत्वविषयक हो या किसी का नित्यत्वविषयक पर सभी को पुनर्जन्म
और उस का कारण अज्ञान आदि कुछ न कुछ मानना ही पड़ा है । अतएव ऐसे विचारवाले सभी दार्शनिकों के सामने निम्नोक्त प्रश्न एक समान ही विचारणीय है।
जन्म के कारणभूत तत्त्व का आत्मा के साथ सम्बन्ध कब हुआ और वह सम्बन्ध आत्मा के साथ अनादिकालीन ह तो फिर उस अनादि का नाश कैसे ? एक बार आत्मा से सर्वथा अनादिकाल का सम्बन्ध दूर हो जाने पर फिर उस सम्बन्ध का आत्मा के साथ में सम्बध क्यों न होगा ? और यदि हो तो उस में आपत्ति ही क्या हैं ? इस तरह के प्रश्नों का उत्तर सभी अपुनरावृत्तिरूप मोक्ष माननेवाले दार्शनिकोंने अपनी अपनी अलग २ परिभाषा में भी वस्तुतः एकरूप से ही प्रदर्शित किया है।
सभीने आत्मा के साथ जन्म के कारण के सम्बन्ध को अनादिकालीन ही माना है । सभी कहते हैं कि यह बतलाना तो असम्भव ही है कि अमुक समय में आत्मा के साथ जन्म के कारणभूत मूलतत्त्व का आत्मा से सम्बन्ध हुआ। फिर चाहे वह जन्म का मूल कारण अज्ञान, अविद्या, वासना, कर्म, दृष्ट, भाग्य, दैव या और कुछ पुरुष प्रकृति
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