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शुभाशीष / श्रद्धांजलि
विनम्रता की मूर्ति
डॉ. पी. सी. जैन
प्राचार्य, शा. महाविद्यालय, खुरई
सन् 1951 से 2005 तक गणेश प्रसाद वर्णी दिगम्बर जैन संस्कृत महाविद्यालय में अध्यापक से प्राचार्य तक आपकी प्रतिष्ठा एक सुखद अध्याय के समारंभ का आधार बनी । संस्था के प्रथम पुरुष प्राचार्य के रूप में अनेक अवसरों पर व्युत्पन्न विषम परिस्थितियों के समाधान हेतु आपने जिस धैर्य, दृढ़ता और प्रत्युत्पन्नमतित्व का परिचय दिया है । वह समाज के सर्वथा अनुकरणीय एवं प्रेरणा का अजस्र स्रोत रहेगा। साम्प्रतिक परिवेश में अनुदिन प्रवर्धमान युवा आक्रोश के तीखेपन में तली समस्याओं का समाधान प्राप्त करना वस्तुतः लोहे के चने चबाना है इस दृष्टि से अपने व्यक्तित्व और कृतित्व के द्वारा इस महाविद्यालय में आप शलाका पुरुष की भांति दीप्तिमान रहे।
जीवन की सांध्य वेला में भी घण्टों आसनस्थ रहकर कार्य करते रहना यश और धन की लिप्सा से विरक्त रहकर श्रम की पूजा को ही सर्वोपरि समझना क्षुद्र स्वार्थी और प्रलोभनों से परे आज के व्यवसायिक युग में सर्वथा विरल है। पुरानी पीढ़ी की कर्मनिष्ठा, आचरणगत पवित्रता और उदार समताप भावना जिसे अंग्रेजी में सिक्रिटिज्म कहते हैं आपके चरित्र के प्रस्थान बिन्दु थे ।
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ
विरक्त का निर्विकार होना सहज है किन्तु गृहस्थ का निर्विकार होना उतना ही कठिन और दुःसाध्य है राग और द्वेष से ऊपर उठना मानवता का चरम साध्य है आप अपने सहकर्मियों और सहवर्गियों से प्रशासन व्यवस्था के अभिक्रम में यदाकदा असहमत और असंतुष्ट हुए किन्तु असहमति या असंतोष एक बार भी किसी की हानि का कारण बना हो इसका उदाहरण नहीं मिलता। यह आपके निर्विकार मन और मानवीय सहानुभूति का जीवांत प्रतीक बनकर हमारी स्मृति में बहुमूल्य धरोहर के रूप में सुरक्षित रहेगा। आपका जीवन सामान्य भूमि पर अधिष्ठित था । आपकी जीवन सरिता, सहजता और सरलता उभयकूलों के बीच से प्रभावशील हुई है। आज के इस प्रदर्शन युग में जहाँ चतुर्दिक् दम्भ और आडम्बर का बोलबाला है । वहाँ आप अपनी सहजता और साधारणता से विचलित नहीं हुए। पद और प्रतिष्ठा का दंभ आप पर कभी हावी नहीं हुआ यह अपने आप में बहुत बड़ी बात है आपाधापी की आंधी में सज्जनता के प्रदीप को प्रज्जवलित रखने में समर्थ रहे यह आपकी इष्टापत्ति थी ।
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अंत में सर्वमान्य सहित आप स्वस्थ्य रहकर पूर्ण आयु का उपभोग र रके अंतानंत जीवन में बिहार कर गये जहाँ से सदकर्म करते हुए स्वर्ग पहुँचेंगे। हम सभी आपको साश्रुनयन और अवरूद्ध कंठ से विदा देते हैं। आगे आने वाली पीढ़ी आपको सदा याद रखेगी ऐसी हमारी आकांक्षा है।
हम हैं आपके शुभाकांक्षी
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