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दिवंगत विद्वानों के जीवन परिचय
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ समाजगत सेवाओं को कभी भुलाया नहीं जा सकता। आप बीसवीं सदी के दिवंगत आदर्श प्राचीन विद्धत परम्परा के विद्वान थे । अ. भा. विद्वत् परिषद के भी सदस्य थे । 1
मुझे यद्यपि पू. पं. जी से शिक्षा प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ है। किन्तु उनकी बड़ी कृपा मुझ पर रही है। ऐसे दिवंगत सरस्वती पुत्र के महान गुणों का स्मरण कर उनके प्रति अपनी आदरांजली अर्पित करता हूँ उन महान जीवन से हम यदि यही शिक्षा ग्रहण करते है :
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भजन
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" स एव दिवसः श्लाध्यः सा वेला सुखदा यिनी । धर्मिणां यत्र संसर्ग, शेषाः जन्म निरर्थकम् ॥”
पं. श्रुत सागर का जीवन परिचय
आप भगवान दास जी भाईजी के द्वितीय पुत्र थे
आप न्याय, काव्य, व्याकरण तीर्थ की उपाधि से युक्त थे । आप सरल स्वभावी, परम संतोषी, सदाचारी, परोपकारी, दयालु, कुशलवक्ता थे । संस्कृत शास्त्रों को प्रवचन के द्वारा हिन्दी भाषा में समझाते थे ।
इनका नाम तुलसीराम था, सागर में अध्ययन कर चार विषय में संस्कृत ग्रन्थ की परीक्षा दी, तब चारों ही विषयों में उत्तीर्ण होकर चारों ही विषयों में ईनाम प्राप्त की। तब गणेश प्रसाद वर्णी जी ने खुश होकर इनका नाम श्रुत सागर रख दिया। उनने भी अध्यापन कार्य गया में किया, तथा सबको नव्य न्याय का विषय पढ़ाते थे जो बहुत ही कठिन है । संस्कृत भाषा में घण्टों उपदेश देते रहते थे । बहुत गंभीर मार्मिक प्रवचन सरल भाषा में करते थे बहुत गहरा ज्ञान था । कोई कैसी भी शंका करें, उसे आसानी से उत्तर देकर खुश करते थे । सरस्वती उनके मुख में निवास करती थी ।
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जावरा पंच कल्याणक में पिताजी के साथ आप (मझले भाई) भी गये थे । वहाँ से सर सेठ हुकम चन्द्र द्वारा एक समस्या (नर देह धरे को कहा फल पायो) पूर्ति पर ईनाम प्राप्त हुई थी, पं. श्रुत सागर जी को ।
वेद पढ़े ओ कुरान पढ़े, पर आतम रूप नहीं रख पायो, दान किया नहिं भोग कियो, द्रव्य कमाय कहा कर पायो । न्याय अन्याय को भेद नहीं, पुण्य के हेतु मैं पाप कमायो, कीर्ति बिना जग मांहि जिये, नर देह धरे को कहा फल पायो ॥
ईश्वर जैन इंजी., भोपाल
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