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दिवंगत विद्वानों के जीवन परिचय
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ देश के हेतु हुये बलिदान, पर ज्ञान बिना कछु हाथ न आयो, दीरघ काल व्यतीत, कियो, निज काम कहीं भी नहीं कर पायो । कूप के भेक बने सब ही, पर मानसरोवर नाहिं सुहायो, धर्म बिना जग माहिं जिये, नर देह धरे को कहा फल पायो॥
आप अध्यात्म के रसिक थे। समयसार ग्रन्थ की संस्कृत टीका पर उपदेश करते थे। बहुत मंद कषाये थी, कभी क्रोध नहीं किया करते थे। कभी तेजी से भी नहीं बोलते थे। बड़े संतोषी थे खाने में जोभी मिले ग्रहण कर लेते थे। आपने कई जगह रामटेक , मुरैना , कटनी बगैरह में सर्विस के साथ-साथ ज्ञान दान भी दिया है। उपाध्याय श्री ज्ञान सागर जी को कितने भी चौमासे में न्याय शास्त्रों का अध्ययन कराया। तथा पू. सरल सागर जी को भी स्वाध्याय कराते थे। इस प्रकार साधु संतों के बीच भी अपने ज्ञान को वितरित करते थे। ज्ञान की तो ऐसी महिमा है कि जितना दिया जाये उतना बढ़ता जाता है। ऐसे ज्ञानी विद्वानों का आज अभाव सा हो गया है । जितना उन्हें ज्ञान था उतना चिंतवन भी करते थे। उन्होंने एक गीत बनाकर समाज को सुनाया, समाज उनके गीत से बहुत प्रभावित हुई। गीत है -
जिया तेरो तनवा, इक दिन धोखा दे है। यम पुरी से आया नोटिस, वापिस न जैहे ॥टेक॥ खाने न देगा जीने न देगा, सोने न देगा जगने न देगा। काम भी पूरा होने न देगा, सब ही अधूरा पड़ा रहेगा।
अब पीछे पछतावत रे है, जिया तेरो तनवा इक दिन धोखा दे है। इस प्रकार आपका ज्ञान के साथ-साथ दिन-रात चितवन भी चलता था। जब उन्होंने स्वास्थ्य ठीक न होने से सर्विस छोड़ दी थी तो मात्र ज्ञान आराधना और चिंतन ही करते थे।
आपकी पत्नि का नाम कस्तूरी बाई था, वह नरयावली की थी। उनकी शिक्षा 8 वीं तक थी। धार्मिक थी, धार्मिक क्रिया का ज्ञान था, भजन गाने में कुशल थीं। पं. श्रुत सागर जी के दो पुत्रियाँ है एवं एक पुत्र ईश्वर चंद है जो भोपाल में इंजीनियर है । तीनों भाई बहिन धार्मिक संस्कारों से युक्त है।
अंत समय में अपने ज्ञान के चिंतन में लीन रहकर सन् 1992 में 89 वर्ष की उम्र में अपनी समाधि की। बीमारी पर ध्यान न देकर शांत रहे । भोपाल में अपने लड़के के पास थे । एक दिन पहले उन्हें स्वप्न आया,कि देव विमान लेकर आये हैं और कह रहे हैं कि चलो नन्दीश्वर पर्वआ गया है नन्दीश्वर द्वीप चले यह विमान खड़ा है, बैठ जाओ इसमे, यहाँ बहुत रह लिया। यह स्वप्न सुबह अपने पुत्र ईश्वर चंद्र को सुनाया, वह वोले अरे ऐसे स्वप्न तो आते ही रहते है। और कहकर शांत हो गये और दूसरे दिन उनकी समाधि हो गई। वह शान्त आत्मा सद्गति को प्राप्त हो गई।।
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