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दिवंगत विद्वानों के जीवन परिचय
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ आत्मा प्रभावनीयः रत्नत्रयतेजसा सततमेव ।
दानतपोजिन पूजा विद्यातिशयैश्च जिनधर्मः ॥ (पुरुषार्थ सिद्धी) भावार्थ - निश्चयनय से रत्नत्रय तेज के द्वारा सर्वदा मानव आत्मा को प्रभावित करें और व्यवहार नयेन दान, तप (इच्छानिरोध), जिनपूजा विधान आदि के द्वारा विश्व में जैनधर्म की प्रभावना करना चाहिए।
परमालादसम्पन्नं, रागद्वेषविवर्जितम् ।
सोहं तं देहमध्येसु, योजानाति स पण्डित: (परमानंद स्त्रोत पद्य 20) भावार्थ - परम शुद्ध आनंद सम्पन्न , राग द्वेषादि भाव, द्रव्य कर्मों से रहित, देह के मध्य में वही मैं आत्मा को जो जानता है निश्चय से वह पण्डित है।
बीसवीं सदी के दिवंगत विद्वान पं. माणिकचंद जी जैन (शाहपुर वालों) का व्यक्तित्व एवं कृतित्व
___ नेमिचंद, जैन
से,नि, शाखा प्रबंधक, मकरोनिया सागर भारत वर्ष के हृदय स्थल मध्यप्रदेश के जिला-सागर के अंतर्गत शाहपुर (मगरोन) नामक ग्राम में पं. स्व. भगवानदास जी जैन को प्रथम पुत्ररत्न की प्राप्ति दिनांक 08/09/1904 को हुई तथा इस पुत्ररत्न का नाम माणिकचंद जैन रखा गया। यह पुत्र आगे चलकर पं. माणिकचंद जैन न्याय काव्यतीर्थ, जैन दर्शनाचार्य के नाम से जैन समाज में प्रसिद्ध हुये । आपका विवाह शाहपुर के ही एक धार्मिक परिवार की कन्या भागवतीबाई के साथ हुआ । विवाहोपरांत पू. 105 गणेश प्रसाद जी वर्णी महाराज की कृपा से आप श्री सतर्क सुधातरंगिणी दिगम्बर जैन पाठशाला सागर में धर्माध्यापक के रूप में कार्यरत् हुये तथा सागर में ही सपरिवार रहने लगे। धार्मिक संस्कार :
___ शाहपुर विद्वानों तथा देवशास्त्र गुरु के भक्तों की नगरी कही जाती है। पू. वर्णी जी की कृपा यहाँ के साधर्मिर्यों पर विशेष रही है। कई पाठशालायें पू. वर्णी जी के नाम पर चल रही हैं । पं. माणिकचंद जी की प्रारंभिक शिक्षा शाहपुर में हुई। आपके पिताजी स्वयं एक विद्वान प्रवचनकार तथा संगीतकार थे णमोकर महामंत्र को पं. भगवानदास जी कई तों में गाया करते थे तथा श्रोताओं को भाव-विभोर कर देते थे । पू. पिताजी के धार्मिक संस्कार पं. माणिकचंद जी पर पड़े थे।
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