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दिवंगत विद्वानों के जीवन परिचय
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ -सिद्ध मंगलं, साहू मंगलं, भवतें न भीयो, तजियो मनमैलवा, - केवली पण्णत्तो धम्मोमंगलं । जीव तूं ..... णमो अरहंताणं.
यह भाईजी महोदय ने पूज्य ऋषभनाथ तीर्थंकर जैसा अनुकरण किया कि अपनी ब्राह्मी पुत्री को मातृभाषा का और सुन्दरी पुत्री को अंकविद्या का पूर्ण ज्ञान कराया था। 7. भाईजी के कुछ दैनिक कर्त्तव्य जो मानव को करने योग्य हैं :
1. अष्ट मूल गुणों को धारण करना, 2 व्यसन और पाँच पापों का त्याग करना, 3. सादा जीवन और उच्च विचारों को चित्त में धारण करना, 4. समय को व्यर्थ नहीं व्यतीत करना, 5. लौकिक शिक्षा के साथ धार्मिक ज्ञान अवश्य प्राप्त करना, 6. स्नान के समय अपने वस्त्र स्वयं साफ करना, 7. संस्कृत भाषा ही इस जग में ,सबकी माँ कहलाती है।
इसको भलीभाँति पढ़ने से सब विद्या आ जाती है । विद्या धन उत्तम इस जग में, सुनो सकल सज्जन प्यारे। वक्त गया फिर हाथ न आवे, लूटो हो लूटन हारे ॥ सरस्वती भण्डार की, बड़ी अपूरब बात । ज्यों खर्चे त्यौ - त्यौ बड़े, बिन खर्चे हट जाये कला बहत्तर पुरुष की, तामें दो सरदार | एक जीव की जीविका. एक जीव उद्धार । वाणी मीठी बोलिये, मन का आपा खोये ।
औरहुँ को शीतल करें, आपहुँ शीतल होये ॥ सबके पल्ले लाल, लाल बिन कोई नहीं। किन्तु भया कंगाल, गांठखोल देखी नहीं। भाईजी के दैनिक प्रवचन के मधुर आध्यात्मिक अमृत कण :सुदपरिचिदाणुभूदा, सब्बस्स वि कामभोग बंध कहा।
एयत्तस्सुवलंभो, णवरि ण सुलभो विहत्तस्स ॥ ( समय सार गाथा 4) भावार्थ - पंचेन्द्रियों के काम, भोग और बंध की कथा तो सब ही जीवों को भव - भव में सुनने में, जानने में और अनुभव में आई है किन्तु सब द्रव्यों से पृथक केवल प्रमुख आत्मा का अनुभव करना सरल नहीं है।
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